We will not accept any Initiative to Change the Nature of Madrasas: Maulana Mahmood Asad Madani

We will not accept any initiative to change the nature of madrasas: Maulana Mahmood Asad Madani

'Protecting Madrasas' Conference Condemns Government Hostility towards madrasa, Advocates for Balanced Approach to Universal Education

New Delhi, April 16 – Against the backdrop of recent rulings of Allahabad High Court affecting the UP Madarsa Board and governmental actions in Assam targeting Islamic Madarsas, Jamiat Ulama-i-Hind convened a crucial conference in New Delhi. The gathering brought together hundreds of vice-chancellors and rectors from influential Islamic Madarsas across Uttar Pradesh.

Presiding over the conference on 'Protection of Madarsas,' Jamiat Ulam-i-Hind President Maulana Mahmood Asa’d Madani underscored the steadfast resistance against any attempts to alter the core identity of Madrasas. Leaders from over 100 prominent Madarsas, including Darul Uloom Deoband, Darul Uloom Waqf Deoband, and Mazahir Uloom, Saharanpur, participated in this significant event held at the Jamiat Ulama-i-Hind's headquarters in New Delhi.

In his presidential address, Maulana Madani highlighted the indispensable role of Madrasas in preserving religious traditions and nurturing spiritual leaders. He emphasized the need for a unified strategy to counter the current adversarial stance of various governmental bodies, while advocating for the preservation of Madrasas' integrity alongside adaptation to contemporary educational standards. He also proposed the establishment of an independent education board akin to ICSE to elevate educational quality.

Various speakers, including Maulana Muhammad Sufian Qasmi, Rector of Darul Uloom Waqf, emphasized financial transparency and the establishment of primary schools alongside Madrasas. They praised Jamiat Ulama-i-Hind's leadership and urged collaborative efforts with institutions like Darul Uloom Deoband to formulate pragmatic solutions.

Maulana Mufti Muhammad Rashid Azmi, Vice Rector of Darul Uloom Deoband, stressed the pivotal role of Madrasas in preserving Islamic teachings, cautioning against reliance on government financial assistance. Members of Darul Uloom Deoband and other esteemed personalities echoed similar sentiments, invoking the historical contributions of religious scholars like Maulana Qasim Nanotawi and Hazrat Sheikh Al Hind in advancing modern education.

After extensive deliberations, the conference unanimously adopted a resolution condemning the hostile behavior of government institutions towards Madarsas and calling for concerted efforts to uphold their dignity and importance.
Furthermore, the formation of a committee to explore the establishment of an independent education board and a permanent committee to oversee Madrasa affairs was announced. Attendees, representing a diverse spectrum of religious scholars, reaffirmed their commitment to safeguarding the autonomy and integrity of Madrasas.

Key suggestions included prioritizing fundamental contemporary education for children aged 6 to 14, adherence to hostel regulations, meticulous documentation of property ownership, and operating under the auspices of a trust or society. Additionally Maulana Rahmtaullah Meer, Maulana Niaz Ahmad Farooqui, Maulana Afzalur Rahman Sheikh Al Hadith Madrasa Ashraf Al Madaris Hardoi, Maulana Shah Abdul Rahim, Rector of Madrasa Riaz Uloom Gureni Jaunpur, and other prominent figures offered their insights. The proceedings were conducted by General Secretary Jamiat Ulama-i-Hind Maulana Hakeemuddin Qasmi.

 

दीनी मदरसों के खिलाफ सरकारी संस्थानों की कार्रवाई भेदभाव पर आधारित


- जमीअत उलमा-ए-हिंद के अंतर्गत आयोजित 'मदरसा संरक्षण सम्मेलन' में मदरसों की सुरक्षा के लिए कई अहम प्रस्ताव पारित
- हमें मदरसों के स्वरूप में बदलाव की कोई भी पहल स्वीकार्य नहीं: मौलाना महमूद असद मदनी
- दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ देवबंद, मजाहिर उलूम समेत पचास से अधिक दीनी मदरसों के पदाधिकारियों का संबोधन
नई दिल्ली, 16 अप्रैल। धार्मिक मदरसों के खिलाफ सरकारी संस्थानों के द्वेषपूर्ण रवैये और कारवाई के संदर्भ में आज नई दिल्ली में स्थित जमीअत उलमा-ए-हिंद के मुख्यालय में "मदरसा संरक्षण सम्मेलन" आयोजित किया गया, जिसकी अध्यक्षता जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने की। सम्मेलन में दारुल उलूम देवबंद, दारुल उलूम वक्फ देवबंद, मजाहिर उलूम सहित उत्तर प्रदेश, अशरफ-उल-मदरसा हरदोई के सभी महत्वपूर्ण संस्थानों के मोहतमिम और पदाधिकारियों ने भाग लिया। अपने अध्यक्षीय भाषण में मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि दीनी मदरसों की भूमिका और उनका महत्व दिन के उजाले की तरह स्पष्ट है। आज उपमहाद्वीप में जो मस्जिदें आबाद हैं और धार्मिक लोग बचे हैं, उनके पीछे मदरसों की कड़ी मेहनत ही है। दरअसल हमारे पूर्वजों के दूरगामी नेतृत्व ने मदरसों की जो मजबूत व्यवस्था स्थापित की थी, उसका उदाहरण पूरी दुनिया में कहीं नहीं मिलता। ऐसे महान संपत्ति की रक्षा के लिए हर संभव संघर्ष और सुरक्षात्मक उपाय करना हम सभी की जिम्मेदारी है।
मौलाना मदनी ने कहा कि आज विभिन्न स्तर पर जिस तरह का रवैया अपनाया जा रहा है, उसके समाधान के लिए हमें एक दीर्घकालिक नीति बनानी होगी और ठोस और स्थिर उपाय करने होंगे। मौलाना मदनी ने कहा कि हमारी संस्थाओं को बंद करने या उसका स्वरूप को बदलने पर पूरी ताकत लगाई जा रही है, लेकिन हम ऐसी कोई व्यवस्था को स्वीकार नहीं करेंगे। लेकिन वर्तमान समय की आवश्यकताओं के अनुरूप ऐसी व्यवस्था स्थापित की जाएगी, जिसके तहत हमारी धार्मिक शिक्षा प्रभावित न हो और समकालीन शिक्षा की आवश्यकताएं भी पूरी हों। मौलाना मदनी ने कहा कि हमारे पूर्वजों ने मदरसों के लोगों को सरकारी सहायता न लेने के संबंध में जो सलाह दी थी, उसकी सच्चाई स्पष्ट हो गई है, इसलिए हमें सरकारी सहायता से हर प्रकार से बचना है। मौलाना मदनी ने आईसीएसई की तरह एक स्वतंत्र शिक्षा बोर्ड की स्थापना की भी वकालत की और कहा कि अगर ऐसी व्यवस्था बन जाए तो शिक्षा के क्षेत्र में एक नया अध्याय जुड़ेगा।
दारुल उलूम वक्फ के मौलाना मोहम्मद सुफियान कासमी ने मदरसों के पदाधिकारियों को सलाह दी कि हिसाब-किताब को हर हाल में दुरुस्त रखें। इसके साथ ही अल्पकालीन योजना के तहत मदरसों के साथ-साथ प्राइमरी स्कूलों की स्थापना पर भी ध्यान देनी चाहिए। उन्होंने जमीअत उलमा-ए-हिंद की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए कहा कि जमीअत ने हर मौके पर देश के मुसलमानों का मार्गदर्शन किया है, इसलिए दारुल उलूम देवबंद की साझेदारी से अगर मदरसों के लिए कोई कार्य-योजना बनाई जाए तो यह एक बेहतरीन पहल होगी।
दारुल उलूम देवबंद के उप-कुलपति मौलाना मुफ्ती मोहम्मद राशिद आजमी ने कहा कि मदरसे और मकतब इस्लाम के चिराग हैं, इनकी वजह से हम सब ईमान वाले हैं। उन्होंने कहा कि स्वतंत्र मदरसों को कभी भी सरकारी सहायता नहीं लेनी चाहिए। इससे बड़ा नुकसान होगा। लेकिन बोर्ड के मदरसों का अस्तित्व भी महत्वपूर्ण है। दारुल उलूम देवबंद के सदस्य शूरा मौलाना रहमतुल्लाह मीर कश्मीरी ने कहा कि हमें अपने बुजुर्गों, खासकर मौलाना कासिम नानौतवी और हजरत शेख-उल-हिंद की भूमिका को सामने रखना चाहिए। हजरत शेख-उल-हिंद ने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की आधारशिला रखी। इससे हमें सीख मिलती है कि हमारे पूर्वज आधुनिक शिक्षा को बढ़ावा देते थे।
नायब अमीर-उल-हिंद मौलाना मुफ्ती सलमान मंसूरपुरी ने कहा कि मदरसों का सिलसिला जारी रहेगा तो दीन का सिलसिला जारी रहेगा अन्यथा दीन के आगे बढ़ने में बहुत बड़ी रुकावट खड़ी हो जाएगी। उन्होंने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद सरकार द्वारा की जा रही नकारात्मक कारवाइयों का पूरी ताकत से मुकाबला कर रही है। लेकिन दीनी मदरसों के संगठनों और समन्वय से एक ठोस कार्य-योजना प्रस्तुत करने की आवश्यकता है। मौलाना सैयद मुफ्ती मोहम्मद सालेह अमीन आम मदरसा मजाहिर उलूम सहारनपुर ने मदरसों से संबंधित गतिविधियों की निगरानी के लिए एक स्थाई उप-समिति बनाने का प्रस्ताव रखा। इनके अलावा मौलाना नियाज अहमद फारूकी, मौलाना अफजालुर्रहमान शेख-उल-हदीस मदरसा अशरफ अल मदारिस हरदोई, मौलाना शाह अब्दुलर्रहीम मोहतमिम मदरसा रियाज-उल-उलूम गुरैनी जौनपुर, मौलाना अब्दुलर्रब आजमी सदर जमीअत उलमा यूपी, मौलाना असजद कासमी नदवी मुरादाबाद, मौलाना अमीनुल हक ओसामा कानपुर, मौलाना अब्दुल कदीम, मौलाना हमजा नायब मोहतमिम जामा मस्जिद अमरोहा, मुफ्ती जमीलुर्रहमान प्रतापगढ़, मौलाना अमीनुल हक अब्दुल्ला कानपुर समेत कई प्रमुख हस्तियों ने अपने सुझाव पेश किए। सम्मेलन के संचालन की जिम्मेदारी जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना मोहम्मद हकीमुद्दीन कासमी ने निभाई। इन सभी सुझावों के आलोक में एक महत्वपूर्ण प्रस्ताव पारित किया गया, जिसमें कहा गया है कि
मदरसों के संरक्षण का यह सम्मेलन सरकारी संस्थानों और एजेंसियों के शत्रुतापूर्ण व्यवहार और सुधार के बजाय दंगे करने के प्रयासों की कड़ी निंदा करता है और इसे देश के निर्माण और विकास और अच्छी छवि के लिए हानिकारक मानता है। खासकर असम के मुख्यमंत्री और एनसीपीसीआर के चेयरमैन ने जिस तरह से मदरसों और उनसे जुड़े व्यक्तियों के प्रति द्वेषपूर्ण और नकारात्मक रवैया अपनाया है और लगातार अपने बयानों से देश की जनता को गुमराह करने की कोशिश कर रहे हैं, वह किसी भी तरह से स्वीकार्य नहीं है। विशेष रूप से किसी संस्था की व्यक्तिगत प्रशासनिक कमियों के नाम पर सभी दीनी मदरसों को बदनाम करने की आदत से उन्हें बचना चाहिए।
प्रस्ताव में आगे कहा गया है कि
स्वतंत्र (निजी) मदरसे आरटीआई अधिनियम के खंड (5) के तहत नहीं आते हैं, लेकिन जिस तरह से इस देश में स्वतंत्र दीनी मदरसों को निशाना बनाया जा रहा है, उनकी शैक्षणिक स्थिति और महत्व की आलोचना हो रही है, इसके मद्देनजर दीर्घकालिक रूप से इसके प्रभाव सामने आने की अत्याधिक संभावना है। इस कारण निम्नलिखित मामलों पर गंभीरता के साथ विचार करने की आवश्यकता है।
1. 6 से 14 वर्ष के बच्चों को बुनियादी समसामयिक शिक्षा उपलब्ध कराने के लिए हर संभव प्रयास करने होंगे ताकि वे धार्मिक शिक्षा के साथ-साथ आधुनिक शिक्षा के अधिकार से भी लाभान्वित हो सकें। 2. एनसीपीसीआर ने 18 साल तक के बच्चों के शैक्षणिक संस्थानों में हॉस्टल के लिए नियामक दिशानिर्देश तैयार किए हैं। मदरसों के लोग उनका पालन करने का यथासंभव प्रयास करें। 3. स्वामित्व के दस्तावेज और निर्माण कार्य का नक्शा पारित हो, विशेष रूप से स्वामित्व का पूरा प्रमाण, रजिस्ट्री, नोटरी, वक्फनामा, रजिस्ट्री व्यक्तिगत स्वामित्व या संस्था का स्वामित्व, दाखिल-खारिज के साथ रजिस्ट्री, भवन का स्वीकृत नक्शा, पीने का पानी, बिजली की आपूर्ति, अग्निशमन के लिए फायर ब्रिगेड विभाग से अनुमति आदि की अपडेट प्रतियां अपने पास रखी जाएं। 4. ट्रस्ट या सोसायटी के अधीन संस्था की व्यवस्था को संचालित किया जाए।
प्रस्ताव में हिसाब में पारदर्शिता के लिए ऑडिट करने को भी प्रोत्साहित किया गया। इसके साथ ही सलाह दी गई कि मदरसों के स्वतंत्र चरित्र को बनाए रखने के लिए सभी स्तरों पर सरकारी सहायता से बचा जाए।
इस अवसर पर आईसीएसई बोर्ड की तर्ज पर एक स्वतंत्र बोर्ड की स्थापना की प्रक्रिया की समीक्षा के लिए पांच सदस्यीय समिति का गठन किया गया, जिसमें (1) प्रो. फुरकान कमर (2) मौलाना कलीमुल्लाह कासमी (3) प्रो. नोमान शाहजहांपुरी को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। इन तीनों लोग को आपसी परामर्श द्वारा दो और नाम जोड़ने के लिए अधिकृत होंगे और एक महीने में अपनी रिपोर्ट प्रस्तुत करेंगे। साथ ही दीनी मदरसों के संबंध में एक स्थाई समिति भी गठित की गई, जिसमें जमीअत उलमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना हकीमुद्दीन कासमी को संयोजक के रूप में और मौलाना कारी शौकत अली, प्रो. नोमान शाहजहांपुरी, मौलाना कलीमुल्लाह कासमी, हाफिज कासिम बागपत, कारी नवाब गाजियाबाद शामिल होंगे। यह समिति एक सप्ताह के भीतर बैठक करेगी और सलाह करके और दो-तीन सदस्यों का नाम जोड़ने के लिए अधिकृत होगी।
बैठक में मौलाना मोहम्मद मदनी नाजिम आला जमीएत उलमा उत्तर प्रदेश, जहीन अहमद, मौलाना मोहम्मद सलीम कासमी मुरादाबाद, मौलाना मोहम्मद आकिल गढ़ी दौलत, मौलाना मोहम्मद हामिद, मौलाना अब्दुलर्रहीम रायपुरी, मौलाना मोहम्मद खालिद मसूरी, मौलाना तौकीर जौनपुर, मौलाना असद जौनपुर, मौलाना मोहम्मद अब्बास, मौलाना मोहम्मद हमजा अमरोहा, मौलाना मोहम्मद यामीन मोबल्लिग दारुल उलूम देवबंद, मुफ्ती जफर कासमी, मौलाना अलाउद्दीन मुजफ्फरनगर, हाफिज अब्दुल हई खैराबाद, हाफिज सईद अहमद बहराइच, कारी मोहम्मद यामीन अमरोहा, मुफ्ती अब्दुलर्रहमान अमरोहा, मुफ्ती बिन्यामीन मुजफ्फरनगर, हाफिज कासिम, कारी मोहम्मद जाफरखडा, मौलाना मोहम्मद सलमान, कारी अमीर आजम मेरठ, मौलाना जहीर आलम, मौलाना इरफान रामपुर, कारी नवाब, मुफ्ती मोहम्मद हसन, मुफ्ती कासिम रजी फिरोजाबाद, मौलाना आबिद कासमी बुलन्दशहर आदि ने भी भाग लिया और अपने विचार व्यक्त किए।

دینی مدارس کے خلاف سرکاری اداروں کے اقدامات عناد پر مبنی
جمعیۃ علماء ہند کے زیر اہتمام’ تحفظ مدارس کانفرنس‘ میںمدارس کی حفاظت کے لیے کئی اہم تجاویز منظور
ہمیں مدارس کی نوعیت بدلنے والا کوئی اقدام منظور نہیں : مولانا محمود اسعد مدنی

دارالعلوم دیوبند،دارالعلوم وقف دیوبند، مظاہر علوم سمیت پچاس سے زائد دینی مدارس کے ذمہ داران کا خطاب
نئی دہلی 16، اپریل :دینی مدرسوں کے خلاف سرکاری اداروں کے معاندانہ رویے اور اقدامات کے تناظر میں آج جمعیۃ علماء ہند کےمرکزی دفتر نئی دہلی  میں’’تحفظ مدارس کانفرنس‘‘ منعقد ہوئی، جس کی صدارت مولانا محمود اسعد مدنی صدر جمعیۃ علماء ہند نے کی ۔ کانفرنس میں دارالعلوم دیوبند، دارالعلوم وقف دیوبند، مظاہر علوم سمیت اترپردیش، اشرف المدارس ہردوئی کے سبھی اہم اداروں کے مہتمم و ذمہ دار حضرات شریک ہوئے۔اپنے صدارتی خطاب میں مولانا محمود اسعد مدنی نے کہا کہ دینی مدارس کا کردار اور ان کی اہمیت روز روشن کی طرح عیاں ہیں ۔آج برصغیر میں جو مساجد آباد ہیں اور دینی تشخصات زندہ ہیں ان کے پیچھے مدارس کی محنت کارفرما ہے۔ درحقیقت ہمارے اکابر کی دور رس قیادت نے مدارس کا جو مستحکم نظام قائم کیا تھا، اس کی مثال پوری دنیا میں نہیں ملتی ۔ایسی عظیم نعمت کے تحفظ کی ہر ممکن جدوجہد اور حفاظتی تدابیر اختیار کرنا ہم سب کی ذمہ داری ہے ۔

مولانا مدنی نے کہا کہ آج مختلف سطحوں پر جس طرح کا رویہ اختیار کیا جارہا ہے اس کے ازالے کے لیے ہمیں طویل مدتی پالیسی بنانی ہوگی اور ٹھوس و مستحکم اقدامات کرنے ہوں گے ۔ مولانا مدنی نے کہا کہ ہمارے ادارے کو بند کرنے یا اس کی نوعیت کو تبدیل کرنے پر پوری طاقت صرف کی جارہی ہے ، لیکن ہم ایسا کوئی نظام قبول نہیں کریں گے ، تاہم عصر حاضر کے تقاضوں کے مطابق ایسا نظام قائم کیا جائے گا کہ جس کے تحت ہماری دینی تعلیم متاثر نہ ہو اور عصری تعلیم کےتقاضے بھی پورے ہوں۔مولانا مدنی نے کہا کہ ہمارے اکابر نے اہل مدارس کو سرکاری امداد نہ لینے سے متعلق جو مشورہ دیا تھا ، اس کی حقیقت واضح ہو گئی ہے ، اس لیے ہمیں سرکاری امداد سے بہر صورت اجتناب کرنا ہے۔مولانا مدنی نے آئی سی ایس ای کی طر ح ایک آزاد تعلیمی بورڈ قائم کرنے بھی وکالت کی اور کہا کہ اگر ایسا نظام بن جائے توتعلیمی میدان میں ایک نئے باب کا اضافہ ہوگا۔

دارالعلوم وقف کے مہتمم مولانا محمد سفیا ن قاسمی نے ذمہ داران مدارس کو مشورہ دیا کہ حساب وکتاب کو ہر حال میں درست رکھیں نیز قلیل مدتی پلان کے تحت مدارس کے ساتھ پرائمری اسکول کے قیام پر توجہ دینی چاہیے ۔ انھوں نے جمعیۃ علماء ہند کے کردار پر روشنی ڈالتے ہوئے کہا کہ جمعیۃ نے ہر موقع پر ملت کی رہ نمائی کی ہے، اس لیے دارالعلوم دیوبند کے اشتراک سے اگر مدارس کے لیے کوئی لائحہ عمل بنایا جائے تو یہ ایک بہترین قدم ہو گا ۔
دارالعلوم دیوبند کے نائب مہتمم مولانا مفتی محمد راشد اعظمی نے کہا کہ مدارس و مکاتب اسلام کے چراغ ہیں ، ان کی وجہ سے ہم سب ایمان والے ہیں ، انھوں نے کہا کہ آزاد مدارس کو کبھی بھی سرکار ی امداد نہیں لینی چاہیے ، اس سے بہت بڑا نقصان ہو گا ۔تاہم بورڈ کے مدرسوں کی بقا بھی اہم ہے ۔دارالعلوم دیوبند کے رکن شوری مولانا رحمت اللہ میر کشمیری نے کہا کہ ہمیں اپنے اکابر بالخصوص مولانا قاسم نانوتوی ؒ اور حضرت شیخ الہند ؒ کے کردار کو سامنے رکھنا چاہیے ، حضرت شیخ الہند ؒ نے جامعہ ملیہ اسلامیہ کی بنیاد رکھی ،اس سے ہمیں نصیحت ملتی ہے کہ ہمارے اکابر جدید تعلیم کو فروغ دیتے تھے ۔

نائب امیر الہند مولانا مفتی سلمان منصورپوری نے کہا کہ اگر مدارس کا سلسلہ جاری رہے گا تو دین کا سلسلہ جاری رہے گا اور ورنہ دین کے فروغ میں بہت بڑی رکاوٹ کھڑی ہو جائے گی ، انھوں نے کہا کہ جمعیۃ علماء ہند حکومت کی طرف سےکی جارہی منفی کاررائیوں کا پوری قوت سے مقابلہ کررہی ہے۔ تاہم دینی مدارس کے وفاق اور رابطہ مدارس کے اشترا ک سے ایک ٹھوس لائحہ پیش کرنے کی ضرورت ہے ۔مولانا سید مفتی محمد صالح امین عام مدرسہ مظاہر علوم سہارن پورنے مدارس سے متعلق کارروائیوں پر نگاہ رکھنے کے لیے ایک مستقل ذیلی کمیٹی بنانے کی تجویز پیش کی، ان کے علاوہ مولانا نیاز احمد فاروقی ، مولانا افضال الرحمن شیخ الحدیث مدرسہ اشرف المدارس ہردوئی، مولانا شاہ عبدالرحیم مہتمم مدرسہ ریاض العلوم گرینی جونپور، مولانا عبدالرب اعظمی صدر جمعیۃ علماء یوپی، مولانا اسجد قاسمی ندوی مرادآباد، مولانا امین الحق اسامہ کانپور، مولانا عبدالقدیم ، مولانا حمزہ نائب مہتمم جامع مسجد امروہہ،مفتی جمیل الرحمن پرتاپ گڑھ ، مولانا امین الحق عبداللہ کانپورسمیت کئی اہم شخصیات نے اپنی تجاویز پیش کیں۔ اجلاس میں نظامت کی ذمہ داری ناظم عمومی جمعیۃ علماء ہندمولانا محمد حکیم الدین قاسمی نے ادا کی۔ان تمام مشوروں کی روشنی میں ایک اہم تجویز منظور ہوئی ، جس میں کہا گیا ہے کہ
 
تحفظ مدارس کا یہ اجلاس سرکاری اداروں اور ایجنسیوں کے معاندانہ رویے اور اصلاح کے بجائے فساد کی کوششوں کی سخت مذمت کرتا ہے اور اسے ملک کی تعمیر و ترقی اور نیک نامی کے لیے نقصان دہ تصور کرتا ہے۔ بالخصوص آسام کے وزیر اعلیٰ اور این سی پی سی آر کے چیئرمین نے جس طرح مدارس اور ان سے وابستہ شخصیات کے خلاف معاندانہ او رمنفی رویہ اختیار کیا ہے اور پہ درپہ اپنے بیانات کے ذریعہ ملک کے عوام کو گمراہ کرنے کی کوشش ہے ، وہ کسی بھی طرح قابل قبول نہیں ہے ۔بالخصوص کسی ا دارے کی انفرادی انتظامی خامیوں کے نام پر سبھی دینی مدارس کو بدنام کرنے کی روش سے ان کو باز آنا چاہیے۔
تجویز میں مزید کہا گیا کہ

آزاد ( پرائیویٹ) مدارس آرٹی ای ایکٹ کی شق(5) کے تحت مستثنیٰ ہیں۔لیکن جس طرح اس ملک میں آزاددینی مدارس کو نشانہ بنایا جارہا ہے، ان کی تعلیمی حیثیت و اہمیت پر تنقید جارہی ہے، اس کے مدنظر لانگ ٹرم میں اس کے اثرات مرتب ہونے کا غالب گمان ہے ۔اس کے مدنظر درج ذیل امور پر سنجیدگی کے ساتھ غور وفکر کرنے کی ضرورت ہے۔
۱۔6تا 14کے بچوں کے لیے بنیادی عصری تعلیم کی فراہمی کی حتی الوسع کوشش کرنی ہو گی تا کہ وہ دینی تعلیم کے سا تھ عصری تعلیم کے حق سے بھی فیضیاب ہوسکیں۔۲ ۔  این سی پی سی آر نے 18سال تک کے بچوں کےتعلیمی اداروں کے ہاسٹلز کے لیے ریگولیٹری( رہنما) خطوط تیار کیے ہیں۔ اہل مدارس ان پر عمل پیرا ہونے کی حتی الوسع کوشش کریں۔۳۔ ملکیت کے کاغذات اور تعمیری نقشے کی منظوری بالخصوصملکیت کا مکمل ثبوت ، رجسٹری ،نوٹری ، وقف نامہ ،رجسٹری ذاتی ملکیت یا ادارہ کی ملکیت، رجسٹری مع داخل خارج ،بلڈنگ کا منظور کردہ نقشہ ، پینے کا پانی ، بجلی کی سپلائی، فائرفائٹنگ کے لیے محکمہ فائر بریگیڈ سے اجازت وغیرہ کی اپڈیٹ کاپیاں اپنے ساتھ رکھی جائیں
۴۔  ٹرسٹ یا سوسائٹی کے تحت ادارہ کے نظام کو چلایا جائے ۔
تجویز میں  حساب میں شفافیت کے لیے آڈٹ کرنے بھی ترغیب دی گئی ،  نیز مشورہ دیا گیا کہ مدارس کے آزاد کردار کی بقا ء کے لیے سرکار امداد سے ہر سطح پر اجتناب کیا جائے۔

اس موقع پر آئی سی ایس ای  بورڈ کے طرز پرایک آزاد بورڈ کے قیام کے طریقہ عمل کا جائزہ لینے کے لیے پانچ رکنی کمیٹی تشکیل دی گئی جن میں (۱) پروفیسر فرقان قمر (۲) مولانا کلیم اللہ قاسمی (۳) پروفیسر نعمان شاہ جہاں ںپوری کوبطور رکن شامل کیا گیا ہے ۔یہ تینوں حضرات باہمی مشورے سے مزید دو نام شامل کرنے کے مجازہوں گے اورایک مہینہ میں اپنی رپورٹ پیش کریں گے ۔نیز دینی مدارس کے سلسلے میں ایک مستقل کمیٹی بھی تشکیل دی گئی جن میں مولانا حکیم الدین قاسمی ناظم عمومی جمعیۃعلماء ہند بطور کنوینر اور مولانا قاری شوکت علی، پروفیسر نعمان شاہ جہاں پوری،مولانا کلیم اللہ قاسمی،حافظ قاسم باغپت،قاری نواب غازی آباد شامل ہوں گے ۔یہ کمیٹی ایک ہفتہ کے اندر میٹنگ کرے گی اور حسب مشورہ بطور رکن مزید دو تین ناموں کا اضافہ کرنے کی مجاز ہو گی ۔
اجلاس میں مولانا محمدمدنی ناظم اعلیٰ جمعیۃعلماء اترپردیش ، ذہین احمد ، مولانا محمد سالم قاسمی مرادآباد،مولانا محمد عاقل گڑھی دولت،مولانا محمد حامد،مولانا عبدالرحیم رائے پوری،مولانا محمد خالد مسوری،مولانا توقیر جونپور،مولانا اسعد جونپور،مولانا محمد عباس،مولانا محمد حمزہ امروہہ،مولانا محمد یامین مبلغ دارالعلوم دیوبند ،مفتی ظفر قاسمی، مولاناعلاء الدین مظفرنگر،حافظ عبدالحئ خیرآباد،حافظ سعید احمد بہرائچ،قاری محمد یامین امروہہ،مفتی عبدالرحمن امروہہ،مفتی بنیامین مظفرنگر،حافظ قاسم،قاری محمد جعفرکھڈا،مولانا محمد سلمان ، قاری امیر اعظم میرٹھ،مولانا ظہیر عالم، مولانا عرفان رام پور،قاری نواب ، مفتی محمد حسن،مفتی قاسم رضی فیروزآباد،مولانا عابد قاسمی بلندشہر وغیرہ نے بھی شرکت کی اور اپنے خیالات کا اظہار کیا۔
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مدیر محترم اس پر یس ریلیز کو شائع فرما کر شکر گزار کریں
نیاز احمد فاروقی
سکریٹر ی جمعیۃ علما ء ہند
 
 
April 16, 2024


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