Legal Notice from Jamiat Ulama-i-Hind to NCPCR Chairman
Urging him to retract false statements against Jamiat Open School and cease misleading information about religious madrassas: Jamiat
New Delhi March 20, 2024
In response to false, concocted, and defamatory statements against Jamiat Ulama-i-Hind made by NCPCR Chairman Priyank Kanungo, Jamiat Ulama-i-Hind, through its President Maulana Mahmood Asa’d Madani, has issued a clarification. On behalf of the Jamiat, Supreme Court lawyer Vrinda Grover has served a notice to NCPCR Chairman demanding the retraction of these statements within seven days, failing which legal action will be pursued.
In a letter addressed to Shri Priyank Kanungo dated March 20, 2024, Jamiat’s legal representatives have strongly refuted the baseless allegations. These allegations, disseminated through various media channels, have tarnished Jamiat’s reputation and integrity as an organization dedicated to serving the educational needs of marginalized communities, particularly from the Muslim minority.
On March 13, Shri Kanungo levied baseless accusations against Jamiat Open School in a letter to the National Institute of Open School (NIOS), branding its operations as 'organized crime' and insinuating improper financial ties with Pakistan. These defamatory remarks were further propagated during a televised interview.
The Jamiat’s notice unequivocally rejects these allegations, emphasizing that the Jamiat Open School operates within legal parameters, providing formal education opportunities accredited by the National Institute of Open Schooling (NIOS) to marginalized communities, particularly the Muslim minority. The initiative is aimed at empowering students who have been deprived of mainstream educational opportunities, facilitating their integration into civil society.
Mr. Kanungo's deliberate use of hostile language towards the institution of Madrasas and Dar-ul-Ulooms is unwarranted. It is essential to note that ‘Madrasas’ enjoy recognition in our legal scheme.In fact, in Sec. 1(5) of The Right to Free and Compulsory Education Act, 2009, it is specifically stated that the Act shall not apply to Madarsas, Vedic Pathsalas and other institutions primarily imparting religious instruction. There is thus statutory recognition of the validity of Madarsas, and there are various state level laws which also recognize these institutes of religious teaching.
He falsely, and maliciously termed an initiative named as ‘Jamiat Open School’ that only facilitates learning through NIOS for the students of different educational institutions (linguistically, ‘Madrasa’ in itself meaning ‘educational institution’) to running an ‘open Madrasa’. Moreover, Jamiat does not stop children from getting formal schooling but facilitates formal education for children with informal education. By employing the above quoted false imputations against Jamiat he severely harmed the reputation.
Moreover, his insinuations regarding financial impropriety are baseless, as Jamiat Ulama-i-Hind adheres strictly to the Foreign Contribution Regulation Act, 2010, with a valid FCRA certificate issued by the Ministry of Home Affairs. Needless to say, Jamiat is wholly compliant with all requirements under the FCRA law and rules, and no money is transferred to Pakistan and neither is it used for any purposes impermissible under law, which is under constant monitoring of the FCRA wing of the Ministry of Home Affairs as per the mandate of the FCRA law. This issue is beyond the mandate of the NCPCR and as such his actions reek of malice especially given that your statements are rooted in falsehoods, surmises and untenable assertions.
The notice admonishes Mr. Kanungo's irresponsible conduct as the legally appointed Chairperson, urging restraint from further defamatory statements detrimental to organizations dedicated to societal betterment. He is hereby put on notice to immediately cease and desist from issuing any such statements, communications, representations, directions or orders, either in your personal capacity or as Chairperson of the NCPCR, which directly or indirectly cast false, baseless, untenable and per se defamatory aspersions on my Client or the Jamiat Open School.
Jamiat Ulama-i-Hind implores the media to exercise caution in disseminating unverified allegations that tarnish the reputation of organizations committed to serving the educational needs of marginalized communities.
एनसीपीसीआर के चेयरमैन को जमीअत उलमा-ए-हिंद का नोटिस
- जमीअत ओपन स्कूल के खिलाफ झूठे बयान वापस लें, धार्मिक मदरसों के खिलाफ भ्रामक बयान देना बंद करें, अन्यथा कानूनी कार्रवाई पर मजबूर होंगे: मौलाना महमूद असद मदनी
नई दिल्ली, 20 मार्च, 2024। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) के अध्यक्ष प्रियांक कानूनगो द्वारा धार्मिक मदरसों और जमीअत ओपन स्कूल को बदनाम करने के खिलाफ जमीअत उलमा-ए-हिंद ने कठोर कदम उठाया है। इस संबंध में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद की ओर से जानी मानी वकील वृंदा ग्रोवर ने उक्त चेयरमैन को पत्र लिख कर सात दिन के अंदर लिखित रूप से अपना बयान वापस लेने की सलाह दी है, अन्यथा उनके विरुद्ध कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
ज्ञात हो कि गत 13 मार्च में श्री कानूनगो ने नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओपन स्कूल्स (एनआईओएस) को पत्र लिखकर जमीअत उलमा-ए-हिंद के शिक्षण संस्थान "जमीअत ओपन स्कूल अभियान" को 'संगठित अपराध' की संज्ञा दी थी। इसके साथ ही इस पर विदेशों से फंडिंग प्राप्त करने विशेष रूप से पाकिस्तान से संबंध होने का निराधार आरोप लगाया गया था। इस संबंध में चेयरमैन ने एक टीवी चैनल पर भी यह आरोप दोहराया। इसके अलावा उक्त चेयरमैन दीनी मदरसों को बदनाम करने और उन पर बेतुके आरोप लगाने में भी आगे-आगे रहते हैं।
नोटिस में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि जमीअत उलमा-ए-हिंद जैसे ऐतिहासिक और देशभक्त संगठन को बदनाम करने और उस पर झूठे आरोप लगाने की कोशिश किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। साथ ही इतने ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति के लिए यह शोभा नहीं देता। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने इस नोटिस द्वारा लगाए गए आरोपों की निंदा की है। विभिन्न मीडिया चैनलों के माध्यम से फैलाए गए इन आरोपों ने जमीअत ओपन स्कूल की प्रतिष्ठा को प्रभावित किया है, जबकि यह संस्था पिछड़े समुदायों, विशेषकर मुस्लिम अल्पसंख्यकों की शैक्षिक आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए समर्पित है।
श्री कानोनगो के दावों के विपरीत, जमीअत ओपन स्कूल कानूनी फ्रेमवर्क के भीतर कार्य करता है और इसका मुख्य उद्देश्य धार्मिक मदरसों के छात्रों को राष्ट्रीय मुक्त विद्यालयी शिक्षा संस्थान (एनआईओएस) के माध्यम से आधुनिक शिक्षा के अवसर प्रदान करना है। इस पहल का उद्देश्य ऐसे छात्रों को सशक्त बनाना है जो मुख्यधारा के शैक्षिक अवसरों से वंचित हैं ताकि वह सिविल सोसायटी की मुख्यधारा में शामिल हो सकें। दूसरी ओर, जमीअत किसी भी छात्र को औपचारिक शिक्षा प्राप्त करने से नहीं रोकती, बल्कि पारंपरिक शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को आधुनिक शिक्षा भी प्रदान की जाती है।
श्री कानूनगो जमीअत ओपन स्कूल को 'ओपन मदरसा' का जो नाम दे रहे हैं, वह न केवल गलत है बल्कि दुर्भावनापूर्ण है। साथ ही धार्मिक स्कूलों के बारे में उनकी अपमानजनक टिप्पणियां इन संस्थानों की संवैधानिक पहचान और अधिकारों को नुकसान पहुंचा रही हैं।
उन्हें यह समझना चाहिए कि देश की कानूनी व्यवस्था में 'धार्मिक मदरसों' को मान्यता दी गई है। अनिवार्य शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 के 1(5) में विशेष रूप उल्लेख है कि यह अधिनियम मदरसों, वैदिक पाठशालाओं और मुख्य रूप से धार्मिक शिक्षा प्रदान करने वाले अन्य संस्थानों पर लागू नहीं होगा। इस प्रकार मदरसों की वैधता को देश के संविधान के अनुच्छेद 29 और 30 के साथ-साथ विभिन्न राज्य-स्तरीय कानूनों में भी कानूनी रूप से मान्यता दी गई है जो धार्मिक शिक्षा के इन संस्थानों को मान्यता देते हैं।
इसके अलावा, कानूनी रूप से नियुक्त अध्यक्ष होने के नाते, "बच्चों के खिलाफ संगठित अपराध" जैसे वाक्यों का चयन बहुत ही निंदनीय और जमीअत उलमा-ए-हिंद को बदनाम करने वाला कृत्य है। धार्मिक शिक्षा देना अल्पसंख्यकों का मौलिक अधिकार है, अन्य धर्मों द्वारा भी धार्मिक शिक्षा दी जाती है और संस्थाएं स्थापित की जाती हैं। परंतु उन्होंने धार्मिक विद्यालयों को ही निशाना बनाकर पक्षपात का प्रमाण दिया है।
जहां तक वित्तीय मामलों का सवाल है, तो चेयरमैन ने धन जुटाने को पाकिस्तान से जोड़ा है। उन्हें पता होना चाहिए कि जमीअत उलमा-ए-हिंद किसी भी विदेशी योगदान के लिए विदेशी योगदान विनियमन अधिनियम, 2010 का सख्ती से पालन करती है, और इस उद्देश्य के लिए उसके पास गृह मंत्रालय द्वारा जारी एक नवीनीकृत एफसीआरए प्रमाणपत्र है। यह कहने की जरूरत नहीं है कि किसी भी पैसे का पाकिस्तान से कोई लेना-देना नहीं है। एफसीआरए कानून का मामला एनसीपीसीआर के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। इसके बावजूद उन्होंने पाकिस्तान का नाम लेकर अपनी सीमाएं लांघी हैं, उनकी बातों की जड़ें झूठ, अनुमान और अविश्वसनीय दावों में निहित हैं।
जमीअत उलमा-ए-हिंद ने मीडिया का ध्यान भी आकर्षित किया है कि वह ऐसे झूठे बयान को जारी करने से बचे जो समाज की भलाई के लिए काम करने वाले संगठनों को बदनाम करने का कारण हैं।
این سی پی سی آر کے چیئرمین کو جمعیۃ علماء ہند کی طرف سے نوٹس
جمعیۃ اوپن اسکول کے خلاف جھوٹے بیان واپس لیں، دینی مدارس کے خلاف گمراہ کن بیانات سے بازآئیں ورنہ قانونی کارروائی پر مجبور ہوں گے:مولانا محمود اسعد مدنی
نئی دہلی ۲۰ مارچ ۲۰۲۴ ء نیشنل کمیشن فار پروٹیکشن آف چائلڈ رائٹس (این سی پی سی آر)کے چیئرمین پریانک کانونگوکے ذریعہ دینی مدارس اور جمعیۃ اوپن اسکول کو بدنام کرنے کے خلاف جمعیۃ علماء ہند نے سخت قدم اٹھایا ہے، اس سلسلے میں صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود اسعد مدنی کی طرف سے معروف وکیل ورندا گرور نے مذکورہ چیئرمین کو خط لکھ کر سات دن کے اندر تحریری طورپر اپنا بیان واپس لینے کا مشورہ دیا ہے، ورنہ ان کے خلاف قانونی کارروائی کی جائے گی۔واضح ہو کہ ۱۳/مارچ کو شری کانونگو نے نیشنل انسٹی ٹیوٹ آف اوپن اسکول (این آئی او ایس)کو خط لکھ جمعیۃ علماء ہند کے تعلیمی ادارہ’ جمعیۃاوپن اسکول کی مہم کو’منظم جرم‘ سے تعبیر کیا تھا، نیز اس پر بیرون ملک سے فنڈ حاصل کرنے بالخصوص پاکستان سے تعلق ہونے کا بے بنیاد الزام عائد کیا تھا، اس سلسلے میں چیئرمین نے ایک ٹی وی چینل پر بھی اس الزام کا اعادہ کیا ۔ اس کے علاوہ مذکوہ چیئرمین دینی مدارس کو بدنام کرنے اور ان کے خلاف بے ہودہ الزامات عائد کرنے میں بھی پیش پیش رہتے ہیں۔
نوٹس میں صاف کہا گیا ہے کہ جمعیۃ علماء ہند جیسی تاریخی اور وطن پرورجماعت کو بدنام کرنے اور اس پر جھوٹے الزامات عائد کرنے کی کوشش کسی بھی صورت میں قابل قبول نہیں ہے۔ نیز اتنے بڑے عہدے پر بیٹھے شخص کے لیے یہ زیبا بھی نہیں ہے۔جمعیۃ علماء ہند کے صدر نے اس نوٹس کے ذریعہ لگائے گئے بے بنیاد الزامات کی تردید کی ہے۔ مختلف میڈیا چینلز کے ذریعے پھیلائے گئے ان الزامات نے جمعیۃ اوپن اسکول کی ساکھ کو متاثر کیا ہے، جب کہ یہ ادارہ پسماندہ کمیونٹیز خاص طور پر مسلم اقلیت کی تعلیمی ضروریات کی تکمیل کے لیے وقف ہے۔
مسٹر کانونگو کے دعووں کے برعکس، جمعیت اوپن اسکول، قانونی فریم ورک کے اندر کام کرتا ہے اور اس کا مقصد بنیادی طور پر دینی مدارس کے طلبہ کو نیشنل انسٹی ٹیوٹ آف اوپن اسکولنگ (NIOS) کے ذریعے رسمی تعلیم کے مواقع فراہم کرنا ہے۔ اس اقدام کا مقصد ایسے طلبہ کو بااختیار بنانا ہے جو مرکزی دھارے کے تعلیمی مواقع سے محروم ہیں تا کہ وہ سول سوسائٹی کے دھارے میں شامل ہو سکیں۔ دوسری طرف جمعیۃ کسی بھی طالب علم کو رسمی تعلیم حاصل کرنے سے نہیں روکتی بلکہ غیر رسمی تعلیم کے ساتھ بچوں کے لیے رسمی تعلیم کی سہولت فراہم کی جاتی ہے۔
مسٹر کانونگو جمعیت اوپن اسکول کو اوپن مدرسہ' کا جو نام دے رہے ہیں، وہ نہ صرف غلط ہے بلکہ بدنیتی پر مبنی ہے۔ نیز دینی مدارس کے بارے میں ان کے تضحیک آمیز تبصرے، ان اداروں کی آئینی شناخت اور حقوق کو نقصان پہنچا رہے ہیں۔ان کو سمجھنا چاہیے کہ ملک کی قانونی اسکیم میں ’دینی مدارس‘ کو تسلیم کیا گیا ہے۔ لازمی تعلیم کا حق ایکٹ، 2009 کے 1(5) میں خاص طور پر کہا گیا ہے کہ یہ ایکٹ مدارس، ویدک پاٹھ شالوں اور بنیادی طور پر مذہبی تعلیم دینے والے دیگر اداروں پر لاگو نہیں ہوگا۔ اس طرح مدارس کے جواز کو ملک کے آئین کی دفعہ 29 اور 30 میں بھی قانونی طور پر تسلیم کیا گیا ہے، نیز ریاستی سطح کے مختلف قوانین ہیں جو مذہبی تعلیم کے ان اداروں کو تسلیم کرتے ہیں۔
مزید برآں قانونی طور پر مقرر کردہ چیئرپرسن ہونے کے ناتے، ''بچوں کے خلاف منظم جرائم'' جیسے جملے کا انتخاب بہت ہی افسوسناک اور جمعیۃ علماء ہند کو بدنام کرنے والا عمل ہے۔ مذہبی تعلیم دینا اقلیتوں کا بنیادی حق ہے، دیگر مذاہب کی طرف سے بھی مذہبی تعلیم دی جاتی ہیاور ادارے قائم کیے جاتے ہیں۔ لیکن انھوں نے صرف دینی مدارس کو نشانہ بنا کر عصبیت کا ثبوت دیا ہے۔
جہاں تک مالی معاملات کا تعلق ہے ، تو چیئرمین نے فنڈز اکٹھے کرنے کو پاکستان سے وابستہ کیا ہے۔ ان کو معلوم ہونا چاہیے کہ جمعیۃ علماء ہند کسی بھی غیر ملکی تعاون کے لیے فارن کنٹری بیوشن ریگولیشن ایکٹ، 2010 پر سختی سے عمل پیرا ہے، اور اس مقصد کے لیے اس کے پاس وزارت داخلہ کے ذریعہ تجدید شدہ ایف سی آرایسرٹیفکیٹ ہے۔ یہ کہنے کی کوئی ضرورت نہیں ہے کہ کسی رقم کا پاکستان سے کوئی تعلق نہیں ہے۔ ایف سی آر اے قانون کا معاملہ این سی پی سی آر کے دائرہ اختیار سے باہر ہے، اس کے باوجود انھوں نے پاکستان کا نام لے کر اپنی حدوں کو پارکیا ہے، ان کی باتوں کی جڑیں جھوٹ، قیاس اور ناقابل یقین دعووں پر مبنی ہیں۔ جمعیۃ علماء ہند نے میڈیا کو بھی متوجہ کیا ہے کہ وہ ایسے جھوٹے بیانات کو جاری کرنے سے گریز کرے جو معاشرے کی بہتری کے لیے کام کرنے والی تنظیموں کو بدنام کرنے کا سبب ہیں۔
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