SUPREME COURT HALTS BULLDOZER OPERATIONS
Temporary ruling clamps down on bulldozer justice; Court warns police and administration against acting as the judiciary. Jamiat president welcomes it
President of Jamiat Ulama-i-Hind, Maulana Mahmood Asad Madani, welcomed the Supreme Court verdict that has placed a stay on bulldozer operations across the country until October 1st, except in cases involving public roads, sidewalks, railway tracks, and water bodies. The Court clarified that the notion of "bulldozer justice" is unacceptable. The ruling was delivered during a hearing of a petition filed by Maulana Mahmood Asad Madani, President of Jamiat Ulama-i-Hind, and Secretary Maulana Niaz Ahmed Farooqui in Writ Petition (Civil) No. 295 of 2022 (and connected matters).
Maulana Madani noted that an environment has been created where bulldozers are perceived as symbols of justice, violating constitutional rights and judicial processes. "We commend the Court for taking notice of irresponsible statements made by government ministers, and we demand that such statements be immediately halted to uphold the rule of law and prevent the misuse of authority." He further added that a civilized nation cannot allow entire communities to be punished under any circumstances. "Even in general cases, bulldozers come and demolish houses where elderly and bedridden people live. They are entirely punished, and after that, the narrative is built that criminals have been punished through statements from BJP ministers and the media."
Today, a bench of Justices B.R. Gavai and K.V. Viswanathan passed this direction in a petition challenging the alleged actions of various state governments demolishing the buildings of persons accused of crimes as a punitive measure. The Court posted the matters for the next hearing on October 1. Solicitor General of India Tushar Mehta raised objections to the Court's order, saying that the hands of statutory authorities can't be tied in this manner. However, the bench refused to relent, stating that "heavens won't fall" if the demolitions are stopped for two weeks. "Stay your hands. What will happen in 15 days?" Justice Gavai remarked.
The bench said that it had passed the direction invoking its special powers under Article 142 of the Constitution. "Even if there is one instance of illegal demolition, it is against the ethos of the Constitution," Justice Viswanathan emphasized during the brief hearing.
"We made it clear we won't intervene in cases of unauthorized construction, but the executive cannot act as the judiciary," Justice Gavai said.
The bench questioned why the properties were suddenly demolished in 2024. Expressing its intent to lay down guidelines to prevent the misuse of power to demolish unauthorized constructions, Justice Viswanathan said, "Until the next date, there should be a stay on demolition without the leave of the court."
Solicitor General Mehta argued that a "narrative" was being built that a particular community was being targeted. Justice Viswanathan responded, saying that "outside noises" were not influencing the Court. "We won't get into the question of which community at this point. Even if there is one instance of illegal demolition, it is against the ethos of the Constitution," he added.
The bench also noted that after its last order (where it expressed its intention to lay down guidelines), certain statements were made by Ministers. "After the order, there have been statements that bulldozers will continue..." Justice Gavai said.
"After the 2nd of September, there has been grandstanding and justification. Should this happen in our country? Should the Election Commission be notified? We will formulate directives," Justice Viswanathan asserted.
It may be recalled that on the last date, the Court had expressed its intention to lay down pan-India guidelines to address concerns that authorities in several states were resorting to the demolition of houses of persons accused of crimes as punitive action. To this end, parties were asked to submit draft suggestions, which could be considered by the Court. Following the order, Jamiat Ulama-i-Hind submitted its suggestions.
Key Points of Jamiat Ulama-i-Hind’s Proposed Guidelines:
Authorities or municipal bodies must appoint officers accountable for responding to courts or relevant authorities regarding demolitions.
These officers should report to divisional commissioners or equivalent officials.
Before deciding on demolitions, a survey must be conducted to determine the legality of properties.
A list of properties selected for partial or complete demolition must be prepared.
Property owners must receive written notice 60 days before demolition, outlining reasons, and served through registered post and online platforms.
Notices should be issued in local languages, and appeals must be allowed within 15 days.
No demolitions should target individual properties without a comprehensive review of the entire area’s illegal constructions.
Case Title: Jamiat Ulama-i-Hind v. North Delhi Municipal Corporation | Writ Petition (Civil) No. 295 of 2022 (and connected matters).
बुलडोजर को न्याय का प्रतीक बनाना संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है: मौलाना महमूद मदनी
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की सराहना, केंद्रीय मंत्रियों के बयानों पर जताई चिंता
नई दिल्ली, 17 सितंबर: जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा बुलडोजर कार्रवाईयों पर रोक लगाने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि देश में ऐसा वातावरण बना दिया गया है कि बुलडोजर को न्याय का प्रतीक माना जाता है। यह न केवल न्यायिक प्रक्रिया का अपमान है, बल्कि संवैधानिक अधिकारों का भी उल्लंघन है। मौलाना मदनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्रियों के गैरजिम्मेदाराना बयानों पर संज्ञान लेकर सराहनीय बात कही है। उन्होंने यह भी कहा कि ऐसे बयानों पर तुरंत रोक लगनी चाहिए ताकि न्यायिक प्रक्रिया सर्वोपरि रहे और कानून का दुरुपयोग न हो।
बुलडोजर की कार्रवाई पर सुप्रीम कोर्ट की अंतरिम रोक
सुप्रीम कोर्ट ने जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और सचिव मौलाना नियाज अहमद फारूकी की याचिका पर सुनवाई करते हुए एक अंतरिम आदेश जारी किया कि देश के किसी भी हिस्से में 1 अक्टूबर तक बुलडोजर नहीं चलाया जाएगा। न्यायालय ने स्पष्ट किया कि यह आदेश सार्वजनिक सड़कों, फुटपाथ, रेलवे लाइनों और जलाशयों पर अतिक्रमण पर फिलहाल लागू नहीं होगा। कोर्ट ने कहा कि बुलडोजर को न्याय का प्रतीक बनाना स्वीकार नहीं किया जाएगा।
जस्टिस बीआर गवई और केवी विश्वनाथन की पीठ ने यह निर्देश जारी करते हुए कहा कि किसी भी अपराध या घटना के बाद किसी के घर को गिराने की फिलहाल अनुमति नहीं है। कोर्ट ने इन मामलों की अगली सुनवाई के लिए 1 अक्टूबर की तिथि निर्धारित की है। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने न्यायालय के आदेश पर आपत्ति जताते हुए कहा कि कानूनी अधिकारियों के हाथ इस तरह से नहीं बांधे जा सकते, लेकिन पीठ ने जवाब देने से इनकार कर दिया और कहा कि अगर विध्वंस की कार्रवाइयां दो सप्ताह के लिए रोक दी जाएं तो आसमान नहीं गिर जाएगा।
सरकारी मंत्रियों के बयान पर आपत्ति
अदालत ने इस बात पर घोर नाराजगी व्यक्त की कि पिछले आदेश के बाद (जहां उसने निर्देश जारी करने का इरादा व्यक्त किया था) केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों द्वारा ऐसे बयान दिए गए कि "बुलडोजर चलते रहेंगे।" जस्टिस गवई ने कहा कि 2 सितंबर के बाद ऐसी धमकियां और दलीलें पेश की गईं, क्या यह हमारे देश में होना चाहिए? जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि अदालत ने देश भर में दिशानिर्देश जारी करने की मंशा व्यक्त की थी ताकि इस आशंका को दूर किया जा सके कि कई राज्यों के अधिकारी, आरोपियों के घरों को सजा के रूप में ध्वस्त कर रहे हैं।
सुनवाई के दौरान जमीअत उलमा-ए-हिंद के वकील एमआर शमशाद और एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड फर्रुख रशीद समेत कई अहम वकील मौजूद रहे।
पृष्ठभूमि
सुप्रीम कोर्ट में 2022 में दायर याचिकाओं का संबंध दिल्ली के जहांगीरपुरी में अप्रैल 2022 के विध्वंस अभियान से था, जिसे बाद में रोक दिया गया। याचिकाकर्ताओं ने तर्क दिया था कि अधिकारी सजा के तौर पर बुलडोजर का इस्तेमाल नहीं कर सकते। सितंबर 2023 में सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकील कपिल देव ने सरकार के रवैये पर चिंता जताई थी। उन्होंने संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत घर के अधिकार का बचाव किया और ध्वस्त किए गए घरों के पुनर्निर्माण की मांग की थी। मध्य प्रदेश और राजस्थान में विध्वंस की कार्रवाइयों के विरुद्ध तत्काल राहत के लिए याचिकाएं जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा हाल ही में दायर की गईं, जिसके बाद यह सुनवाई हो रही है।
जमीअत उलमा-ए-हिंद द्वारा प्रस्तुत दिशानिर्देश
जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने सुझाव प्रस्तुत किए, जिनमें निम्नलिखित महत्वपूर्ण बिंदु शामिल हैं:
• प्रशासन या स्थानीय निकाय ऐसे अधिकारियों को नियुक्त करेंगे जो विध्वंस से संबंधित अदालतों या संबंधित अधिकारियों के प्रति जवाबदेह होंगे।
• यह अधिकारी डिवीजनल कमिश्नर या उसके समकक्ष अधिकारी को रिपोर्ट करेंगे।
• विध्वंस का फैसला करने से पूर्व अधिकारी को क्षेत्र का सर्वे करना होगा ताकि यह निर्धारित किया जा सके कि कितने घर स्थानीय निकायों के कानूनों के तहत विध्वंस के लिए पात्र हैं।
• प्रभावित घरों के मालिकों या रहने वालों को विध्वंस से कम से कम 60 दिन पहले एक लिखित नोटिस दिया जाएगा।
• नोटिस स्थानीय भाषा में भी प्रदान किया जाएगा।
• विध्वंस से 10 दिन पूर्व अधिकारी को एक हलफनामा दायर करना होगा जिस में यह प्रमाणित किया जाएगा कि नोटिस मौजूदा दिशानिर्देशों के अनुसार दिया गया है।
• अपील के विचाराधीन होने की स्थिति में, जब तक निर्णय नहीं आता, विध्वंस नहीं किया जा सकता।
• तोड़फोड़ केवल एक या कुछ घरों को निशाना बनाकर नहीं की जानी चाहिए। अधिकारियों को पूरे क्षेत्र में अवैध निर्माणों की पहचान करनी होगी और सभी विध्वंसों के लिए एक पूर्व निर्धारित समय तय करना होगा।
• इन सिद्धांतों का उल्लंघन करने वाले अधिकारियों को दंडित किया जाएगा और पीड़ित व्यक्तियों को पर्याप्त मुआवजा प्रदान किया जाएगा।
यह दिशानिर्देश जमीअत उलमा-ए-हिंद के वरिष्ठ वकील एमआर शमशाद द्वारा तैयार किए गए हैं और राज्य अधिकारियों द्वारा की जाने वाली विध्वंस की गतिविधियों में पारदर्शिता, न्याय और उचित प्रक्रिया सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं।
بلڈوزر کارروائی پر روک
سپریم کورٹ نے عبوری فیصلہ سناتے ہوئے حکومت کے وزیر وں کی اس بیان پر بھی گرفت کی کہ’’ کچھ بھی ہو بلڈوزر چلتا رہے گا ‘‘ کہا کہ پولس انتظامیہ عدالت نہ بنے
عرضی گزار صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محموداسعد مدنی نے کہا کہ ملک میں ایسا ماحول بنایا جاتا ہے کہ بلڈوزر نے انصاف کردیا۔مولانا مدنی نے سپریم کورٹ کے ذریعہ مرکزی وزرا کے بیانات پر گرفت کی تحسین کی ۔
نئی دہلی ۱۷؍ستمبر :سپریم کورٹ نے بلڈوزر کارروائیوں کے خلاف جمعیۃ علماء ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی اور سکریٹری مولانا نیاز احمد فاروقی کی عرضی پر سماعت کرتے ہوئے ایک عبوری حکم جاری کیا ہے کہ ملک کے کسی کونے میں یکم اکتوبر تک بلڈوزر نہیں چلایا جائے گا۔ عدالت نے واضح کیا کہ یہ حکم عوامی سڑکوں، فٹ پاتھ، ریلوے لائنوں اور آبی ذخائر میں درپیش تجاوزات پر فی الحال لاگو نہیں ہوگا،لیکن بلڈوزر جسٹس کی مہیما منڈل قبول نہیں کی جائے گی۔
جسٹس بی آر گوائی اور کے وی وشواناتھن پر مشتمل بنچ نے یہ ہدایات جاری کرتے ہوئے کہا کہ کسی جرم یا واقعہ کے بعد کسی کے گھر کو گرانے کی اجازت فی الحال نہیں ہے ۔عدالت نے ان معاملات کی اگلی سماعت کے لیے یکم اکتوبر کی تاریخ مقرر کی۔ سالیسٹر جنرل تشار مہتا نے عدالت کے حکم پر اعتراض اٹھایا کہ قانونی حکام کے ہاتھ اس طرح نہیں باندھے جا سکتے۔ تاہم بنچ نے جواب دینے سے انکار کر دیا اور کہا کہ اگر انہدامات دو ہفتوں کے لیے روک دیے جائیں تو آسمان نہیں گرے گا۔
عدالت نے کہا کہ اس نے آئین کے آرٹیکل 142 کے تحت اپنے خصوصی اختیارات کو استعمال کرتے ہوئے یہ ہدایت جاری کی ہے۔ ''اگر ایک بھی غیر قانونی انہدام ہوتا ہے تو یہ آئین کے اصولوں کے خلاف ہے۔ ہم نے واضح کردیا ہے کہ ہم غیر مجاز تعمیرات کے معاملے میں مداخلت نہیں کریں گے ،لیکن انتظامیہ جج نہیں بن سکتی۔ سماعت کے دوران جمعیۃ علماء ہند کے وکیل ایم آر شمشاد اور ایڈوکیٹ آن ریکارڈ فرخ رشید سمیت کئی اہم وکیل موجود تھے۔
عدالت نے سوال کیا کہ 2024 میں اچانک جائیدادیں کیوں مسمار کی گئیں۔ عدالت نے اس بات پر زور دیا کہ وہ غیر مجاز تعمیرات کو مسمار کرنے کے اختیارات کے غلط استعمال کو روکنے کے لیے ہدایات جاری کرنے کا ارادہ رکھتی ہے۔ جسٹس وشواناتھن نے کہا کہ اگلی تاریخ تک عدالت کی اجازت کے بغیر انہدام پر پابندی ہے۔سالیسٹر جنرل نے کہا کہ ایک ''بیانیہ'' بنایا جا رہا ہے کہ ایک خاص برادری کو نشانہ بنایا جا رہا ہے۔ جسٹس وشواناتھن نے کہا کہ باہر کی آوازیں عدالت کو متاثر نہیں کر رہی ہیں۔ ہم اس وقت، کس برادری کا معاملہ ہے، اس میں نہیں جائیں گے۔ اگر ایک بھی غیر قانونی انہدام ہوتا ہے تو یہ آئین کے اصولوں کے خلاف ہے۔
عدالت نے اس بات پر سخت غصہ کا اظہارکیا کہ پچھلے حکم کے بعد (جہاں اس نے ہدایات جاری کرنے کے ارادے کا اظہار کیا تھا) مرکزی سرکار کے کچھ وزیروں کی طرف سے ایسے بیانات دیے گئے کہ ’’بلڈوزر چلتے رہیں گے‘‘ جسٹس گوائی نے کہا۔ 2 ستمبر کے بعد ایسی دھمکیاں اور جواز پیش کیے گئے ،کیا یہ ہمارے ملک میں ہونا چاہیے؟
جسٹس وشواناتھن نے کہا کہ یاد رہے کہ آخری تاریخ کو عدالت نے ملک بھر میں رہنما اصول وضع کرنے کے ارادے کا اظہار کیا تھا تاکہ اس بات پر تشویش کا ازالہ کیا جا سکے کہ کئی ریاستوں کے حکام ، ملزموں کے مکانات کو سزا کے طور پر مسمار کررہے ہیں۔ اس مقصد کے لئے فریقین کو مسودہ تجاویز جمع کرانے کے لیے کہا گیا تھا ۔ اس حکم کے بعد جمعیۃ علماء ہند نے اپنی تجاویز پیش کیں۔
پس منظر
سپریم کورٹ میں 2022 میں دائر درخواستوں کا تعلق دہلی کے جہانگیرپوری میں اپریل 2022 میں ہونے والی انہدامی مہم سے تھا، جسے بعد میں روک دیا گیا۔ عرضی گزاروں نے موقف اختیار کیا تھا کہ حکام سزا کے طور پر بلڈوزر کا استعمال نہیں کر سکتے۔ ستمبر 2023 میں سماعت کے دوران، سینئر وکیل کپل دیو نے حکومتی رویے پر تشویش ظاہر کی تھی ۔ انھوں نے آئین کے آرٹیکل 21 کے تحت گھر کے حق کا دفاع کیا اور مسمار شدہ گھروں کی تعمیر نو کا مطالبہ کیا تھا۔ مدھیہ پردیش اور راجستھان میں انہدامی کارروائیوں کے خلاف ہنگامی ریلیف کی عرضیاں جمعیۃ علماء ہند کی طرف سے حال میں داخل کی گئیں، اس کے بعد یہ سماعت ہو رہی ہے۔
جمعیۃعلماء ہند کی طرف سے پیش کردہ گائیڈ لائن کے چند اہم نکات
(۱) حکام یا بلدیاتی ادارے ایسے افسران کا تقرر کریں گے جو انہدام سے متعلق عدالتوں یا متعلقہ حکام کو جوابدہ ہوں گے( ۲ ) یہ افسران ڈویژنل کمشنر یا مساوی افسر کو رپورٹ کریں گے۔(۳ ) انہدام کا فیصلہ کرنے سے پہلے افسر کو علاقے کا سروے کرنا ہوگا تاکہ یہ طے کیا جا سکے کہ کتنے مکانات بلدیاتی قوانین کے تحت انہدام کے قابل ہیں(۴ ) ان گھروں کی فہرست تیار کی جائے گی جنہیں مکمل یا جزوی طور پر مسمار کیا جانا ہے(۵) متاثرہ مکانات کے مالکان یا رہائشیوں کو انہدام سے کم از کم 60 دن پہلے تحریری نوٹس دیا جائے گا(۶)نوٹس میں انہدام کی وجوہات بیان کی جائیں گی اور یہ بذریعہ دستی،رجسٹرڈ پوسٹ اور میونسپل ویب سائٹ پر اپلوڈ کیا جائے گا(۷)نوٹس مقامی زبان میں بھی فراہم کیا جائے گا۔(۸) انہدام سے 10 دن قبل افسر کو ایک حلف نامہ داخل کرنا ہوگا جس میں یہ تصدیق کی جائے گی کہ نوٹس موجودہ رہنما اصولوں کے مطابق فراہم کیا گیا ہیاور اسے ڈویژنل کمشنر کے دفتر میں جمع کروایا جائے گا(۹)متاثرہ افراد 15 دن کے اندر نوٹس کے خلاف اپیل کر سکتے ہیں، اور متعلقہ اتھارٹی 15 دن کے اندر سماعت کے بعد فیصلہ کرے گی(۱۰ ) اپیل کے زیر التوا ہونے کی صورت میں، جب تک فیصلہ نہیں آتا، انہدام نہیں کیا جا سکتا۔(۱۱ ) اگر اپیل خارج ہو جائے تو مکینوں کو 10 دن کی مہلت دی جائے گی تاکہ وہ اپنی جگہ خالی کریں(۱۲ ) انہدام صرف ایک یا چند گھروں کو نشانہ بنا کر نہیں کیا جانا چاہیے۔ حکام کو پورے علاقے میں غیر قانونی تعمیرات کی نشاندہی کرنی ہوگی اور تمام انہدامات کے لیے ایک شیڈول مقرر کرنا ہوگا۔ (۱۳) کسی ایک گھر کو اس وقت تک مسمار نہیں کیا جانا چاہیے جب تک کہ پورے علاقے کی غیر قانونی تعمیرات کا منصفانہ جائزہ نہ لے لیا جائے۔(۱۴) ان اصولوں کی خلاف ورزی کرنے والے افسران کو سزائیں دی جائیں گی اور متاثرہ افراد کو مناسب معاوضہ فراہم کیا جائے گا۔(۱۵) خلاف ورزیوں کو توہین عدالت سمجھا جائے گا جیسا کہ ڈی کے باسو بمقابلہ ریاست مغربی بنگال کیس میں سپریم کورٹ کے فیصلے میں بیان کیا گیا ہے۔یہ رہنما اصول ریاستی حکام کی طرف سے انجام دی جانے والی انہدامی سرگرمیوں میں شفافیت، انصاف، اور مناسب عمل کو یقینی بنانے کے لیے بنائے گئے ہیںجو جمعیۃ علماء ہند کے سینئر وکیل ایم آرشمشاد نے تیار کیا ہے ۔
صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود اسعد مدنی کا بیان
صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود اسعد مدنی نے سپریم کورٹ کی کارروائی کا خیرمقدم کرتے ہوئے کہا کہ ملک میں ایسا ماحول بنا دیا گیا ہے کہ بلڈوزر کو انصاف کی علامت سمجھا جاتا ہے، جو عدالتی عمل اور آئینی حقوق کی خلاف ورزی ہے۔ سپریم کورٹ نے مرکزی وزراء کے غیر ذمہ دارانہ بیانات کا نوٹس لے کر قابل تحسین بات کہی ہے ۔ ہم مطالبہ کرتے ہیں کہ ایسے بیانات پر فوری روک لگائی جائے تاکہ انصاف کی بالادستی برقرار رہے اور قانون کا غلط استعمال نہ ہو۔
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