Bulldozers Do Not Deliver Justice, They Destroy It: Maulana Mahmood Madani, Jamiat president
Homes Cannot Be Demolished Simply Because Someone is Accused
Supreme Court Said While Hearing on Jamiat Ulama-i-Hind’s Petition
New Delhi, 2 September: In a significant hearing today on petition number 295/2022 filed by Jamiat Ulama-i-Hind, the Supreme Court strongly stated that the "bulldozer system" cannot be used for delivering instant justice. The Court emphasized in its initial remarks that even a criminal’s house cannot be demolished, let alone that of an accused. While the Supreme Court clarified that it will not protect illegal constructions, it also recognized the necessity of establishing clear guidelines to regulate such actions.
Commenting on today’s proceedings, Maulana Mahmood Asa’d Madani, President of Jamiat Ulama-i-Hind and a key party in the case, stated that bulldozers do not deliver justice; they destroy it. He highlighted that the indiscriminate use of bulldozers punishes entire communities rather than individuals. "When a house is demolished, the entire family suffers—not just the accused. How can we talk about protecting women while simultaneously demolishing 150,000 houses in recent years, leaving women, children, and the elderly to suffer the most?" Maulana Madani questioned. "These people, who did nothing wrong, are left homeless, wandering from place to place. What kind of justice system is this?" He expressed hope that the court will take a firm stance against these unjust practices. Maulana Madani emphasized that not only Muslims but every justice-loving person in this country is deeply troubled by this trend. He assured that Jamiat Ulama-i-Hind will continue its struggle for justice and will not remain silent.
The Supreme Court bench, comprising Justices B.R. Gavai and K.V. Viswanathan, instructed all parties involved in various petitions against 'bulldozer actions' across different states to submit draft proposals by 13 September. These proposals will be collected by senior advocate Nachiketa Joshi, who will compile and present them to the court. The next hearing for this case is scheduled for 17 September.
Jamiat Ulama-i-Hind was represented in court by senior advocate Dushyant Dave and M.R. Shamshad, with Farukh Rasheed as the Advocate on Record. The petition was initially filed in response to bulldozer actions in Jahangirpuri, Delhi, in 2022, where Jamiat successfully halted the operations. However, seeing the continued trend of such actions across the country, Jamiat has now filed special petitions against three states.
Senior advocate Dushyant Dave presented recent incidents from states like Uttar Pradesh, Rajasthan, Madhya Pradesh, and Delhi. He highlighted a case involving a father and son, where Justice Viswanathan noted, "A father may have a disobedient son, but demolishing the father’s house because of this is not the right approach."
Solicitor General of India Tushar Mehta attempted to defend the demolitions, arguing that they were carried out under municipal laws related to illegal constructions. However, Dushyant Dave expressed grave concerns over the growing trend of state governments demolishing homes and stressed that the right to a home is an integral part of the right to life under Article 21 of the Constitution. He urged the court to order the reconstruction of demolished houses, citing egregious examples such as the demolition of a house in Jaipur simply because a Muslim father’s son was involved in a fight at school. In another instance in Kannauj, Uttar Pradesh, a poor barber’s shop was demolished just because a video surfaced showing him using his saliva while massaging a customer’s head. "Where is the justice in this? Under what municipal law can this be considered lawful?" Dave questioned.
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि बुलडोजर से न्याय नहीं, बल्कि न्याय का कत्ल होता है।
किसी के आरोपी होने के कारण घरों को ध्वस्त नहीं किया जा सकता
जमीअत उलेमा-ए-हिंद (मौलाना महमूद असद मदनी) की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई। अदालत 'बुलडोजर कार्रवाइयों' के लिए देशभर में मार्गदर्शक दिशानिर्देश बनाएगी।
नई दिल्ली, 2 सितंबर: जमीअत उलेमा-ए-हिंद की याचिका संख्या 295/2022 पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि त्वरित न्याय के लिए बुलडोजर प्रणाली नहीं चलेगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने प्रारंभिक टिप्पणियों में कहा कि आरोपी तो दूर, किसी अपराधी के घर पर बुलडोजर चलाने का किसी को अधिकार नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह अवैध निर्माणों का संरक्षण नहीं करेगी, लेकिन कुछ मार्गदर्शक सिद्धांतों का होना आवश्यक है।
जस्टिस बी आर गवई और के जस्टिस विश्वनाथन की बेंच ने विभिन्न राज्यों में 'बुलडोजर कार्रवाइयों' के खिलाफ दायर याचिकाओं की सुनवाई के दौरान दोनों पक्षों को 13 सितंबर तक मसौदा प्रस्ताव प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है ताकि उन्हें अदालत के समक्ष पेश किया जा सके। ये प्रस्ताव वरिष्ठ वकील नचिकेता जोशी के पास एकत्र किए जाएंगे, जिन्हें उन्हें संकलित करके अदालत के समक्ष प्रस्तुत करने का कहा गया है। बेंच ने इस मामले की सुनवाई के लिए अगली तारीख 17 सितंबर निर्धारित की है।
आज जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और जमीअत की ओर से याचिकाकर्ता मौलाना नयाज अहमद फारूकी सचिव जमीअत उलेमा-ए-हिंद की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे और एम आर शमशाद अदालत में पेश हुए, इस मामले में एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड फरुख रशीद हैं। यह मामला जमीअत उलेमा-ए-हिंद ने जहांगीरपुरी दिल्ली में बुलडोजर कार्रवाई के खिलाफ दायर किया था, जिसमें जमीअत को उस समय बड़ी सफलता मिली थी और बुलडोजर पर रोक लगाई गई थी, लेकिन देश में लगातार जारी बुलडोजर कार्रवाई पर जमीअत ने नेतृत्व करते हुए तीन प्रदेशों के खिलाफ विशेष याचिका दाखिल की है।
वरिष्ठ वकील दुष्यंत दवे ने विभिन्न, विशेषकर यूपी, राजस्थान, मध्य प्रदेश और दिल्ली में हुए हाल के घटनाक्रमों को उदाहरण के रूप में पेश किया। इसमें एक पिता-पुत्र का भी मामला शामिल था, जिस पर जस्टिस विश्वनाथन ने कहा कि एक पिता का बेटा नाफरमान हो सकता है, लेकिन उसके पिता के घर को इस आधार पर ध्वस्त किया जाना सही नहीं है।
सालिसिटर जनरल ऑफ इंडिया तुषार मेहता ने इस बीच तर्क पेश किया कि अवैध निर्माणों से संबंधित नगरपालिका कानूनों के तहत मकानों को ध्वस्त किया गया। जमीअत के अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने राज्य सरकारों की ओर से लोगों के घरों को ध्वस्त करने के बढ़ते चलन पर चिंता व्यक्त की, और जोर देकर कहा कि घर का अधिकार संविधान के आर्टिकल 21 के तहत जीवन के अधिकार का एक पहलू है। उन्होंने यह भी मांग की कि अदालत को ध्वस्त किए गए घरों की पुनर्निर्माण का आदेश देना चाहिए। उन्होंने तर्क किया कि जयपुर में स्कूल में दो बच्चों का झगड़ा हुआ तो उस में मुस्लिम बच्चे के पिता का घर गिरा दिया गया, जबकि इस मकान का मालिक राशिद खान मामूली ऑटो-रिक्शा चालक है, जिसने बड़ी मुश्किल से पैसे बचाकर घर खरीदा था। यह कैसा न्याय है? और भी आश्चर्यजनक कहानियाँ हैं, यूपी के कन्नौज में एक गरीब नाई की दुकान गिरा दी गई, केवल इस कारण से कि एक वीडियो आया कि वह सिर पर मालिश करते हुए हाथ में थूक लगा रहा है। कहां से इसे आप न्याय कहेंगे और कौन सा नगरपालिका कानून इसे कानून के अनुसार कहा जाएगा?
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी का बयान:
अदालत में हुई आज की कार्रवाई पर टिप्पणी करते हुए इस मामले के महत्वपूर्ण पक्षकार अध्यक्ष जमीअत उलेमा-ए-हिंद मौलाना महमूद असद मदनी ने कहा कि बुलडोजर से न्याय नहीं, बल्कि न्याय का कत्ल होता है। उन्होंने कहा कि जिस तरह से बुलडोजर की कार्रवाई की जाती है उससे एक पूरे समुदाय को सजा दी जाती है, किसी आरोपी का घर गिरने से केवल उसे नहीं बल्कि पूरे परिवार को नुकसान उठाना पड़ता है। मौलाना मदनी ने कहा कि आप महिलाओं के संरक्षण की बात करते हैं, आपने कुछ वर्षों में डेढ़ लाख मकानों को गिरा दिया, इनका सबसे अधिक नुकसान महिलाओं, बच्चों और बूढ़ों को होता है। जिन्होंने कुछ नहीं किया, उन्हें दर-दर भटकना पड़ता है, यह न्याय का कौन सा तरीका आपने स्थापित किया है? हमें उम्मीद है कि अदालत इस पर कठोर कदम उठाएगी। मौलाना मदनी ने कहा कि इससे न केवल मुसलमान बल्कि हर न्यायप्रिय तबका परेशान है। मौलाना मदनी ने कहा कि न्याय के के लिए जमीअत उलेमा-ए-हिंद हर संभव संघर्ष करेगी और बिल्कुल चुप नहीं बैठेगी।
کسی کے ملزم ہونے کی وجہ سے گھر منہدم نہیں کیا جا سکتا
جمعیۃ علماء ہند( مولانا محمود اسعد مدنی) کی عرضی پر سپریم کورٹ میں سماعت۔عدالت بلڈوزر کارروائیوں' پر ملک بھر کے لیے رہ نما ہدایات بنائے گی ۔صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محموداسعد مدنی نے کہا کہ بلڈوزر سے انصاف نہیں بلکہ انصاف کا قتل ہوتا ہے۔
نئی دہلی ۲؍ستمبر :جمعیۃ علماء ہند کی عرضی نمبر 295/2022 پر سماعت کرتے ہوئے آج سپریم کورٹ نے صاف کردیا ہے کہ جھٹ پٹ انصاف کے لیے بلڈوز ر سسٹم نہیں چلے گا۔ سپریم کورٹ نے اپنے ابتدائی تبصرے میں یہ بھی کہا کہ ملزم تو دور کی بات کسی مجرم کے گھر پر بلڈوزر چلانے کا کسی کو اختیار نہیں ہے۔ سپریم کورٹ نے کہا کہ وہ غیر قانونی تعمیرات کا تحفظ نہیں کرے گی، مگر کچھ رہنما اصول وضع کرنا ضروری ہیں۔
جسٹس بی آر گوائی اور کے وی ویشوناتھن پر مشتمل بنچ نے مختلف ریاستوں میں ''بلڈوزر کارروائیوں'' کے خلاف دائر درعرضیوں کی سماعت کے دوران فریقین کو13 ستمبر تک مسودہ تجاویز پیش کرنے کی ہدایت دی ہے تاکہ انہیں عدالت کے سامنے پیش کیا جا سکے۔ یہ تجاویز سینئر وکیل ناچیکتا جوشی کے پاس جمع کی جائیں گی، جنہیں انہیں مرتب کر کے عدالت کے سامنے پیش کرنے کا کہا گیا ہے۔بنچ نے اس معاملے کی سماعت کے لیے اگلی تاریخ 17ستمبر مقرر کی ہے۔ آج جمعیۃ علما ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی اور جمعیۃ کی طرف سے عرضی گزار مولانا نیاز احمد فاروقی سکریٹری جمعیۃ علماء ہند کی طرف سے سینئر ایڈوکیٹ دشینت داوے اور ایم آر شمشاد عدالت میں پیش ہوئے، اس معاملے میں ایڈوکیٹ آن ریکارڈ فرخ رشید ہیں۔یہ مقدمہ جمعیۃ علماء ہند نے جہاں گیر پوری دہلی میں بلڈوزر کارروائی کے خلاف داخل کیا تھا، جس میں جمعیۃ کو اس وقت بڑی کامیابی ملی تھی اور بلڈوزر پر روک لگادی گئی تھی، لیکن ملک میں لگاتار جاری بلڈوزر ایکشن پر جمعیۃ نے لیڈ لیتے ہوئے تین صوبوں کے خلاف خصوصی عرضی داخل کی ہے۔
سینئر وکیل دشینت داو ے نے مختلف بالخصوص یوپی، راجستھان، مدھیہ پردیش اور دہلی میں ہوئے حال کے واقعات بطور مثال پیش کیے۔ اس میں ایک باپ بیٹے کا بھی پیش کیا گیا، اس پر جسٹس ویشوناتھن نے کہا ایک باپ کا بیٹا نافرمان ہو سکتا ہے، لیکن اس کے باپ کے گھر کو اس بنیاد پر منہدم کیا جائے تو یہ صحیح طریقہ نہیں ہے،''
سالیسٹر جنرل آف انڈیا توشار مہتا نے اس درمیان مضحکہ خیز دلیل پیش کی کہ غیر قانونی تعمیرات سے متعلق بلدیاتی قوانین کے تحت مکانات منہدم کیے گئے۔ جمعیۃ کے وکیل سینئر وکیل دشینت داوے نے ریاستی حکومتوں کی جانب سے لوگوں کے گھروں کو منہدم کرنے کے بڑھتے ہوئے رجحان پر تشویش کا اظہار کیا، اور زور دے کر کہا کہ گھر کا حق آئین کے آرٹیکل 21 کے تحت زندگی کے حق کا ایک پہلو ہے۔ انہوں نے یہ بھی مطالبہ کیا کہ عدالت کو منہدم کیے گئے گھروں کی دوبارہ تعمیر کا حکم دینا چاہیے۔ انھوں نے استدلال کیا کہ جے پور میں اسکول میں دوبچوں کا جھگڑا ہوا تو اس میں مسلم بچے کے والد کا گھر گرادیا گیا کہ جب کہ اس مکان کا مالک راشد خاں معمولی رکشہ ڈرائیور ہے، بڑی مشکل سے پیسے بچا کر گھر خریدا تھا، یہ کیسا انصاف ہے؟ سر اور بھی حیرت انگیز کہانیاں ہیں، یوپی کے قنوج میں ایک غریب نائی کی دکان گرادی گئی، صرف اس وجہ سے ایک ویڈیو آئی کہ وہ سر پر مالش کرتے ہوئے ہاتھ میں تھوک لگارہا ہے۔ کہاں سے اسے آپ انصاف کہیں گے اور کو ن سے میونسپل لاء میں اسے قانون کے مطابق کہا جائے گا؟
صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود اسعد مدنی کا بیان
عدالت میں ہوئی آج کی کارروائی پر تبصرہ کرتے ہوئے اس معاملے کے اہم فریق صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمو د اسعد مدنی نے کہا کہ بلڈوزر سے انصاف نہیں بلکہ انصاف کا قتل ہو تا ہے۔ انھوں نے کہا ں جس طرح سے بلڈوزر کی کارروائی کی جاتی ہے اس سے ایک پوری کمیونٹی کو سزا دی جاتی ہے، کسی ملزم کا گھر گرنے سے صرف اس کو نہیں بلکہ پورے خاندان کو نقصان اٹھانا پڑتا ہے۔ مولانا مدنی نے کہا کہ آپ خواتین کے تحفظ کی بات کرتے ہیں، آ پ نے کچھ سالوں میں ڈیرھ لاکھ مکانات گرادیے، ان کا سب سے زیادہ نقصان ان خواتین، بچے اور بوڑھوں کو ہوتا ہے۔جنھوں نے کچھ نہیں کیا، ان کو در در بھٹکنا پڑتا ہے، یہ انصاف کا کونسا طریقہ آپ نے وضع کیا ہے ؟ ہمیں امید ہے کہ عدالت اس پر سخت قدم اٹھائے گی۔ مولانا مدنی نے کہا کہ اس سے نہ صرف مسلمان بلکہ ہر انصاف پسند طبقہ پریشان ہے۔ مولانا مدنی نے کہا انصاف کے حصول کے لیے جمعیۃ علماء ہند ہرممکن جد وجہد کرے گی اور بالکل خاموش نہیں بیٹھے گی ۔
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مدیر محترم اس پر یس ریلیز کو شائع فرما کر شکر گزار کریں
نیاز احمد فاروقی
سکریٹر ی جمعیۃ علما ء ہند
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