The court verdict on Hijab is very disappointing: Jamiat
حجاب سے متعلق ہائی کورٹ کا فیصلہ ملک اور مسلمانوں کے لیے نقصان دہ
जमीयत ने हिजाब पर हाईकोर्ट के फैसले को मुसलमानों के लिए नुकसानदेह बताया
- अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने स्वीकृत संस्कृति, परंपरा और मान्यताओं का सम्मान करने को कहा
नई दिल्ली, 15 मार्च: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे देश और मुसलमानों के लिए नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहा कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। मौलाना मदनी ने कहा कि यह एक सच्चाई है कि कोई भी समाज केवल कानूनी बारीकियों से नहीं चलता बल्कि सामाजिक और पारंपरिक रूप से इसका स्वीकार्य होना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि इस फैसले के कई नकारात्मक प्रभाव होंगे, विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा और वर्तमान में जिस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न की गईं, उसमें वह अपनी स्वतंत्रता और भरोसा खो देंगी। उन्होंने कहा कि हमारे देश की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा और सभ्यता है, खासकर मुस्लिम महिलाओं की मान्यताओं और अवधारणा में सदियों से पर्दा और हया की बड़ा महत्त्व है। इसे केवल अदालत के फैसले से मिटाया नहीं जा सकता।
मौलाना मदनी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फैसला जिस धर्म के सम्बंध में दिया जा रहा है, उसकी स्वीकार्य मान्यताओं, उस धर्म के आधिकारिक विद्वानों और जानकारों के अनुसार होना चाहिए। अदालतों को इस सम्बंध में अपनी तरफ से अलग रास्ता नहीं अपनाया जाना चाहिए।
मौलाना मदनी ने राज्य सरकारों और देश की केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि वह किसी कौम की स्वीकृत संस्कृति, परंपरा और मान्यता की रक्षा करने की जिम्मेदारी पूरी करें और अगर मामला अदालत से हल न हो तो लोकतंत्र में संसद और विधानसभाओं को कानून बनाने का पूरा अधिकार होता है। इसलिए राष्ट्रहित में विधाई संस्थाओं को कार्य करना चाहिए। मौलाना महमूद मदनी ने युवाओं से सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने और कानून को अपने हाथ में लेने से परहेज करने और धैर्य दिखाने की अपील की।
जमीयत ने हिजाब पर हाईकोर्ट के फैसले को मुसलमानों के लिए नुकसानदेह बताया
- अध्यक्ष मौलाना असद मदनी ने स्वीकृत संस्कृति, परंपरा और मान्यताओं का सम्मान करने को कहा
नई दिल्ली, 15 मार्च: जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने हिजाब पर कर्नाटक उच्च न्यायालय के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए इसे देश और मुसलमानों के लिए नुकसानदेह बताया। उन्होंने कहा कि इससे धार्मिक स्वतंत्रता पर सीधा प्रभाव पड़ेगा। मौलाना मदनी ने कहा कि यह एक सच्चाई है कि कोई भी समाज केवल कानूनी बारीकियों से नहीं चलता बल्कि सामाजिक और पारंपरिक रूप से इसका स्वीकार्य होना आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि इस फैसले के कई नकारात्मक प्रभाव होंगे, विशेषकर मुस्लिम लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा और वर्तमान में जिस तरह की परिस्थितियां उत्पन्न की गईं, उसमें वह अपनी स्वतंत्रता और भरोसा खो देंगी। उन्होंने कहा कि हमारे देश की एक बहुत ही प्राचीन परंपरा और सभ्यता है, खासकर मुस्लिम महिलाओं की मान्यताओं और अवधारणा में सदियों से पर्दा और हया की बड़ा महत्त्व है। इसे केवल अदालत के फैसले से मिटाया नहीं जा सकता।
मौलाना मदनी ने इस बात पर ज़ोर दिया कि फैसला जिस धर्म के सम्बंध में दिया जा रहा है, उसकी स्वीकार्य मान्यताओं, उस धर्म के आधिकारिक विद्वानों और जानकारों के अनुसार होना चाहिए। अदालतों को इस सम्बंध में अपनी तरफ से अलग रास्ता नहीं अपनाया जाना चाहिए।
मौलाना मदनी ने राज्य सरकारों और देश की केंद्र सरकार का ध्यान आकर्षित कराते हुए कहा कि वह किसी कौम की स्वीकृत संस्कृति, परंपरा और मान्यता की रक्षा करने की जिम्मेदारी पूरी करें और अगर मामला अदालत से हल न हो तो लोकतंत्र में संसद और विधानसभाओं को कानून बनाने का पूरा अधिकार होता है। इसलिए राष्ट्रहित में विधाई संस्थाओं को कार्य करना चाहिए। मौलाना महमूद मदनी ने युवाओं से सड़कों पर विरोध प्रदर्शन करने और कानून को अपने हाथ में लेने से परहेज करने और धैर्य दिखाने की अपील की।
The court verdict on Hijab is very disappointing: Jamiat
New Delhi March 15, 2022: Reacting to the hijab verdict of the Karnataka High court on Tuesday Maulana Mahmood Asa’d Madani, President of Jamiat Ulama-i-Hind called it deeply disappointing. This verdict would have a direct impact on religious freedom, said Maulana Madani, while maintaining the fact that no society is governed only by its legal nuances about issues where traditional and social values matter a lot.
He said that this verdict would have many negative implications, especially on the education of Muslim girl’s students as they would lose their right to choice and their confidence in the present communal atmosphere.
He noted that our country has a very ancient tradition and civilization, especially with reference to Indian Muslim women who have a deep attachment with their belief about modesty and veil that can never be erased merely by judicial intervention.
Maulana Madani emphasized that the decision regarding any particular religion should be based on the accepted interpretation of the beliefs by the authoritative scholars and jurists of that religion and the courts should not take a diverted path in this regard.
Maulana Madani urged the state governments and the central government to fulfil their responsibility of protecting the established culture and tradition of a particular community and if the issue is not resolved by the court then in a democratic country Parliament and Assemblies have absolute right to enact a law. Therefore we urge the governments to take action that can serve larger national interests. Maulana Mahmood Madani appealed to the youth to exercise restrain and avoid protesting on the streets and taking the law into their own hands.
حجاب سے متعلق ہائی کورٹ کا فیصلہ ملک اور مسلمانوں کے لیے نقصان دہ
مولانا محمود مدنی ، صدر جمعیۃ علماء ہند
نئی دہلی ۱۵مارچ ۲۰۲۲ء
جمعیۃ علماء ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی نے کرناٹک ہائی کورٹ کے ذریعہ حجاب سے متعلق فیصلے پر اپنے رد عمل کا اظہار کرتے اس کو ملک اور مسلمانوں کے لیے نقصان دہ قرار دیا ، انھوں نے کہا کہ اس سے مذہبی آزادی پر براہ راست اثرپڑے گا ۔مولانا مدنی نے کہا کہ یہ ایک حقیقت ہے کہ کوئی بھی سماج صرف قانونی باریکیوں سے نہیں چلتا بلکہ سماجی و روایتی طور پر اس کا قابل قبول ہونا بھی ضروری ہے ۔
انھوں نے کہا کہ اس فیصلے کے کئی منفی اثرات مرتب ہوںگے ، بالخصوص مسلم بچیوں کی تعلیم پر اثر پڑے گا اوروہ موجودہ پیدا کردہ صورت حال میں اپنی آزادی اور اعتماد کھودیں گی۔ انھوں نے کہا کہ ہمارے ملک کی بہت ہی قدیم روایت اور تہذیب ہے ،بالخصو ص مسلم خواتین کے عقیدے و تصور میں صدیوں سے پردہ اور حیا کی ضرورت و اہمیت ثبت ہے ، اسے صرف عدالت کے فیصلے سے مٹایا نہیں جاسکتا۔
مولانا مدنی نے اس امر پر زورد یا کہ فیصلہ جس مذہب کے بارے میں کیاجارہا ہے ، اس کے مسلمہ عقائد ، اس مذہب کے مستند علماء و فقہا کے اعتبار سے ہونا چاہیے ، عدالتوں کو اس میں اپنی طرف سے علیحدہ راہ اختیار نہیں کرنی چاہیے۔
مولانا مدنی نے ریاستی سرکاروں اور ملک کی مرکزی حکومت کو متوجہ کیا کہ وہ کسی قوم کی مسلمہ تہذیب و روایت( پرمپرا) اور عقیدے کی حفاظت کی ذمہ داری پوری کریں اور اگر مسئلہ عدالت سے حل نہ ہو تو جمہوریت میں پارلیامنٹ اور اسمبلیوں کو قانون بنانے کاپوراحق ہوتاہے ، اس لیے قومی مفاد( راشٹر ہت )میں قانون ساز اداروں کو اقدام کرنا چاہیے ۔مولانا محمود مدنی نے نوجوانوں سے اپیل کی کہ وہ سڑکوں پر احتجاج اور قانون کو اپنے ہاتھ میں لینے سے گریز کریں اور صبر وثبات کا مظاہرہ کریں ۔
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