Digging up old grave is hurting the nation
Maulana Mahmood Asa'd Madani, President of Jamiat Ulama-i-Hind expresses concern on the Sambhal Jama Masjid Dispute
New Delhi, November 20:
Maulana Mahmood Asa'd Madani, President of Jamiat Ulama-i-Hind, has expressed grave concern over the court-ordered survey of the historic Sambhal Jama Masjid, following claims that it was originally a temple. He criticized the growing trend of targeting mosques under fabricated historical narratives, stating that such actions are undermining the secular foundations of the nation and creating discord among the people of the country.
He noted, “The nation continues to suffer from the deep wounds of the Babri Masjid’s demolition. To avoid repeating such painful incidents, the Places of Worship (Special Provisions) Act, 1991, was enacted to safeguard the religious character of all places of worship as they stood on August 15, 1947. Even the Supreme Court, in its Ayodhya verdict, emphasized the significance of this law. However, it is alarming to see this legislation being disregarded in recent judicial actions.”
Maulana Madani pointed out the pattern of creating disputes over mosques, seeking judicial permission for surveys in the name of ‘uncovering the truth,’ and then using the findings to deepen divisions between communities. “Such actions not only weaken national unity but also provide divisive forces with opportunities to harm social harmony,” he said.
While reaffirming respect for judicial processes, he urged courts to consider the broader impact of their verdicts on the nation’s peace and stability. Maulana Madani assured that the mosque management committee would make every possible effort to protect the Sambhal Jama Masjid and emphasized that Jamiat Ulama-i-Hind would extend legal support if required.
He appealed to citizens to uphold peace and harmony, exercise patience, and avoid any action that could advance the agenda of communal forces.
इतिहास के गड़े मुर्दे उखाड़ने से देश को गंभीर क्षति हो रही है
जामा मस्जिद संभल विवाद पर जमीअत उलमा-ए-हिंद अध्यक्ष का बयान
नई दिल्ली, 20 नवंबर। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने संभल की जामा मस्जिद के संबंध में पैदा हुए विवाद और कोर्ट द्वारा सर्वे के आदेश पर गहरी चिंता व्यक्त की है। मौलाना मदनी ने कहा कि इतिहास के झूठ और सच को मिलाकर सांप्रदायिक तत्व देश की शांति और व्यवस्था के दुश्मन बने हुए हैं। उन्होंने कहा कि पुराने गड़े मुर्दे उखाड़ने से देश की धर्मनिरपेक्ष बुनियादें हिल रही हैं। इसके साथ ही ऐतिहासिक संदर्भों को दोबारा वर्णित करने की कोशिशें राष्ट्रीय अखंडता के लिए किसी भी तरह से अनुकूल नहीं हैं।
मौलाना मदनी ने याद दिलाया कि देश ने बाबरी मस्जिद की शहादत सहन की है और उसके प्रभावों से आज भी जूझ रहा है। इसी पृष्ठभूमि में पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 लागू किया गया था ताकि देश मस्जिद-मंदिर विवादों का केंद्र न बनने पाए। सुप्रीम कोर्ट ने भी बाबरी मस्जिद मामले में निर्णय सुनाते हुए इस कानून को अनिवार्य बताया था, लेकिन अदालतें आज इसे नजरअंदाज कर के फैसले दे रही हैं। हर गुज़रते दिन के साथ कहीं न कहीं मस्जिद का विवाद खड़ा किया जा रहा है और फिर 'सच्चाई जानने' के नाम पर न्यायालयों से सर्वेक्षण की अनुमति ली जाती है। इसके बाद इस सर्वे को मीडिया द्वारा दो समुदायों के बीच दीवार बनाने के लिए का इस्तेमाल किया जाता है। मौलाना मदनी ने कहा कि हम न्यायालय के फैसले का सम्मान करते हैं, लेकिन न्यायालयों को फैसला लेते समय यह जरूर देखना चाहिए कि देश और समाज पर इसके क्या प्रभाव पड़ेंगे।
मौलाना मदनी ने आशा व्यक्त की मस्जिद इंतेजामिया कमेटी जामा मस्जिद की रक्षा के लिए हर संभव प्रयास करेगी। इसके साथ ही उन्होंने यह भी आश्वासन दिया कि यदि आवश्यकता पड़ी, तो जमीअत-ए-उलमा हिंद कानूनी कार्रवाई में सहायता प्रदान करने के लिए तैयार है। जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष ने देश के सभी नागरिकों से कानून-व्यवस्था की स्थापना के लिए धैर्य और सहनशीलता बनाए रखें और ऐसा कोई कदम न उठाएं जिससे संप्रदायिक शक्तियों के षडयंत्र कामियाब हों।
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