Halal Ban | Supreme Court Grants Interim Protection To Jamiat Chief Maulana Mahmood Madani From Coercive Action Over UP Govt's Ban On Halal Products
New Delhi 25 Jan. 24;
The Supreme Court on Thursday (January 25) issued notice in Jamiat Ulama-e-Hind Halal Trust's plea challenging the Uttar Pradesh government's ban on the manufacture, sale, storage and distribution of halal-certified products. It also protected Jamiat chief Mahmood Madani and other office-bearers of the trust from any coercive action.
A bench of Justices BR Gavai and Sandeep Mehta today agreed to hear a writ petition filed under Article 32 of the Constitution by Jamiat Ulama-e-Hind Halal Trust. The court had earlier issued notice in two other pleas by Halal India Private Limited and Jamiat Ulama-e-Maharashtra challenging the ban imposed by the Uttar Pradesh Government on the "manufacture, sale, storage, and distribution of halal-certified products." The ban, implemented on November 18 last year, sparked controversy and prompted police raids on malls across the state to seize halal products. The petitioners contend that the ban violates citizens' fundamental rights and undermines established certification processes, arguing that it is a misconceived action causing chaos for retailers and affecting legitimate trade practices.
Although initially reluctant to exercise its Article 32 jurisdiction to hear the challenge against this ban, the top court was persuaded to issue notice in the petitions earlier this January, with the petitioners' counsel citing the 'pan-India ramifications' of the halal ban and its impact on inter-state trade and commerce. Although the bench sought the Uttar Pradesh government's response to the pleas, it refused to issue a stay on coercive steps under the impugned government notification.
During the hearing today, the counsel appearing for Jamiat, Advocate MR Shamshad, argued that despite the organisation having already joined the investigation and duly supplied all documents sought, the state government has summoned the president of the trust, asking him to be present in-person, without specifying what is needed from him. Responding to this allegation, Justice Gavai said, "Show them that the Supreme Court is seized of the matter."
Shamshad replied, "We have pointed it out that the Supreme Court is seized of this matter. They want the president to be present. He is a former Rajya Sabha member, bearded man. The purpose is...there are TV cameras. This is completely extra-judicial. Your Lordships please protect him."
Ultimately, beside issuing notice, the bench also directed that no coercive steps will be taken against the petitioner-organisation and its office-bearers.
Background
On November 18, the Food Security and Drug Administration of the Uttar Pradesh Government banned the “manufacture, sale, storage and distribution of halal-certified products with immediate effect”, with the government reportedly justifying its decision by citing a complaint filed in Lucknow by a Bharatiya Janata Party (BJP) youth wing representative, accusing halal certifying bodies of issuing 'forged' certificates to boost sales among Muslims. Crucially, the ban applies solely to sales, manufacture, and storage within Uttar Pradesh and does not extend to export products. The notification reads –
"In compliance with Section 30(2)(d) of the Food Safety and Standards Act, in exercise of the authority vested in Section 30(2)(a) of the said Act, in view of public health, food with Halal certification is being banned within the limits of Uttar Pradesh. A ban is imposed with immediate effect on the manufacture, storage, distribution and sale of products (except food produced for export to the exporter.”
Responding to the outcry and potential disruptions caused by the ban, the state government later granted a 15-day grace period for retailers to withdraw halal-certified products from their shelves. Additionally, the government directed 92 state-based manufacturers receiving halal certification from non-certified organisations to recall and repackage their products.
Halal certificates, indicating that a product is permissible for consumption by followers of Islam, are issued by recognized bodies such as the Jamiat Ulama-i-Hind's Halal Unit and the Halal Shariat Islamic Law Board. These bodies, accredited by the National Accreditation Board for Certification Bodies, have strongly criticised the government's decision. Not only this, the government's move has also led to a constitutional challenge before the Supreme Court by Halal India Private Limited and Jamiat Ulama-e-Maharashtra. This petitioners, in their writ petition, have sought legal intervention from the top court, citing the ban's unconstitutionality and its adverse consequences on trade practices, besides arguing that it infringes upon the fundamental right to choose food based on religious beliefs.
हलाल पर प्रतिबंधः जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारियों पर किसी भी तरह की दंडात्मक कार्रवाई पर रोक
जमीअत उलमा हलाल ट्रस्ट की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का उत्तर प्रदेश सरकार को स्पष्ट निर्देश और नोटिस जारी
नई दिल्ली, 25 जनवरी: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (25 जनवरी) को जमीअत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट की याचिका पर उत्तर प्रदेश सरकार को नोटिस जारी किया है। याचिका में हलाल प्रमाणित उत्पादों को तैयार करने, बिक्री, भंडारण और वितरण पर उत्तर प्रदेश सरकार के प्रतिबंध को चुनौती दी गई है।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की पीठ ने एक महत्वपूर्ण फैसले में जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी और ट्रस्ट के अन्य पदाधिकारियों के विरुद्ध किसी भी दंडात्मक कार्रवाई पर भी रोक लगा दी और सरकार से कहा कि यह मामला अब सुप्रीम कोर्ट के पास है, अतः ऐसी कार्रवाई से बचा जाए। इसके अलावा पीठ ने जमीअत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट की ओर से दायर की गई याचिका पर संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत सुनवाई को भी स्वीकृत कर लिया है।
न्यायालय ने इससे पूर्व हलाल इंडिया प्राइवेट लिमिटेड और अन्य द्वारा दायर की गई याचिकाओं पर नोटिस जारी किया था जिसमें उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा "हलाल-प्रमाणित उत्पादों को तैयार करने, बिक्री, भंडारण और वितरण" पर प्रतिबंध को चुनौती दी गई थी।
गत वर्ष 18 नवंबर को लागू होने वाले इस प्रतिबंध ने विवाद और अफरातफरी को जन्म दिया और पुलिस ने राज्य भर में दुकानों और मॉलों पर छापे मार कर हलाल उत्पादों को जब्त कर लिया। याचिकाकर्ताओं का दावा है कि प्रतिबंध नागरिकों के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है और प्रमाणन (सर्टिफिकेशन) के स्थापित सिद्धांतों और जारी प्रक्रिया को नुकसान पहुंचाने का प्रयास है। सच तो यह है कि यह एक गलतफहमी पर आधारित कार्रवाई है जो खुदरा विक्रेताओं के लिए अफरातफरी का कारण बन रही है और वैध व्यापार के तरीकों को प्रभावित कर रही है।
हालांकि आरंभ में सुप्रीम कोर्ट इस प्रतिबंध के खिलाफ अनुच्छेद 32 के अधिकार क्षेत्र को उपयोग करने के लिए अनिच्छुक था, लेकिन बाद में याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने तर्क दिया कि प्रतिबंध का देशव्यापी प्रभाव हो रहा है। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट जनवरी के आरंभ में याचिकाओं पर नोटिस जारी करने पर सहमति व्यक्त की थी और याचिकाओं पर उत्तर प्रदेश सरकार से जवाब तलब किया, लेकिन अदालत ने सरकारी अधिसूचना के तहत कार्रवाई पर तत्काल रोक लगाने से इनकार कर दिया।
आज की सुनवाई के दौरान जमीअत की ओर से पेश अधिवक्ता एमआर शमशाद ने दलील दी कि हलाल ट्रस्ट जांच प्रक्रिया में हर संभव तरीके से सहयोग कर रहा है और सभी आवश्यक दस्तावेज संबंधित विभाग को दे चुका है। प्रदेश सरकार ने ट्रस्ट के अध्यक्ष को बिना किसी उद्देश्य और कोई विशेष कारण बताए बिना तलब किया है, और उनसे कहा गया है कि वह व्यक्तिगत रूप से उपस्थित हों जो कि अनुचित रवैया है। इस पर जवाब देते हुए जस्टिस गवई ने कहा, ''उन्हें बताओ कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को देख रहा है।''
एमआर शमशाद ने जवाब दिया, "हमने उनको बताया भी है कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले को देख रहा है। फिर भी वह अध्यक्ष की उपस्थिति पर अड़े हुए हैं। इसके अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी साहब हैं, जो एक विश्व स्तरीय इस्लामी विद्वान हैं। इसके साथ ही वह एक पूर्व संसद सदस्य भी हैं। उनको तलब करने की जिद का इसके अलावा कोई उद्देश्य नहीं दिखाई देता कि मौलाना मदनी जाएं और वहां पहले से टीवी कैमरा मौजूद हो और फिर मीडिया ट्रायल चले।
आख़िरकार, नोटिस जारी करने के अलावा, अदालत ने यह भी निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता संगठन और उसके पदाधिकारियों के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए।
पृष्ठभूमि
18 नवंबर 2023 को, उत्तर प्रदेश सरकार के खाद्य सुरक्षा और औषधि प्रशासन ने "हलाल-प्रमाणित उत्पादों की तैयारी, बिक्री, भंडारण और वितरण पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध लगा दिया"। सरकार ने तथाकथित रूप से लखनऊ में दर्ज एक शिकायत का हवाला देते हुए कहा अपने निर्णय को सही ठहराया। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के युवा मोर्चे के एक प्रतिनिधि ने हलाल प्रमाणित करने वाले संगठनों पर मुसलमानों के बीच बिक्री बढ़ाने के लिए 'फर्जी' सर्टिफिकेट जारी करने का आरोप लगाया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि यह प्रतिबंध केवल उत्तर प्रदेश के भीतर बिक्री, उत्पादन और भंडारण पर लागू हुआ और इसको उत्पादों के निर्यात पर लागू नहीं किया गया है। आज कोर्ट में एडवोकेट एमआर शमशाद के अलावा जमीअत उलमा-ए-हिंद हलाल ट्रस्ट के सीओ एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी और अन्य भी उपस्थित थे।
حلال پابندی | جمعیۃ علماء ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی اور ٹرسٹ کے دیگر ذمہ داروں پر کسی قسم کی جبریہ کارروائی پر روک ۔
جمعیۃ علماء حلال ٹرسٹ کی عرضی پر سپریم کورٹ کی اترپردیش حکومت کو واضح ہدایت اور نوٹس جاری
نئی دہلی ۲۵؍جنوری سپریم کورٹ نےجمعرات (25 جنوری) کو جمعیۃعلماء ہند حلال ٹرسٹ کی عرضی پر اترپردیش سرکار کو نوٹس جاری کیا ہے ۔ عرضی میں حلال مصدقہ مصنوعات کی تیاری، خرید و فروخت، ذخیرہ کرنے اور تقسیم کرنے پر اتر پردیش حکومت کی پابندی کو چیلنج کیا گیا ہے۔
جسٹس بی آر گاوائی اور سندیپ مہتا کی بنچ نے ایک اہم فیصلے میں جمعیۃ علماء ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی اور ٹرسٹ کے دیگر عہدیداروںکے خلاف کسی بھی جبریہ کارروائی پر بھی روک لگادی ہے اور سرکار سے کہا ہے کہ یہ اب معاملہ سپریم کورٹ کے پاس ہے ، اس لیے ایسی کارروائی سے گریز کیا جائے ۔ اس کے علاوہ بنچ نے جمعیۃ علماء ہند حلال ٹرسٹ کی طرف سے دائر کی گئیعرضی پر آئین کی دفعہ 32 کے تحت سماعت کرنے کو بھی منظور کرلیا۔
عدالت نے اس سے قبل حلال انڈیا پرائیویٹ لمیٹڈودیگر کی طرف سے دائر کردہ عرضیوں پر نوٹس جاری کیا تھا جس میں اتر پردیش حکومت کی طرف سے "حلال سے تصدیق شدہ مصنوعات کی تیاری، خرید فروخت، ذخیرہ کرنے اور تقسیم" پر عائد پابندی کو چیلنج کیا گیا تھا۔ گزشتہ سال 18 نومبر کو نافذ ہونے والی اس پابندی نے تنازعہ اور افرا تفری کو جنم دیا اور پولیس نے ریاست بھر میں دکانوں اور مالز پر چھاپے مار کر حلال مصنوعات کو ضبط کیا۔ درخواست گزاروں کا دعویٰ ہے کہ پابندی شہریوں کے بنیادی حقوق کی خلاف ورزی اور سرٹیفیکیشن کے قائم کردہ اصولوں اور جاری عمل کو نقصان پہنچانے کی کوشش ہے۔ سچ تو یہ ہے کہ یہ ایک غلط فہمی پر مبنی کارروائی ہے جو خوردہ فروشوں کے لیے افراتفری کا باعث بن رہی ہے اور جائز تجارتی طریقوں کو متاثر کررہی ہے۔
اگرچہ ابتدائی طور پر سپریم کورٹ اس پابندی کے خلاف آرٹیکل 32 کے دائرہ اختیار کو استعمال کرنے سے گریزاں تھا، لیکن بعد میں عرضی گزاروں کے وکلاء نے استدلال کیا کہ اس پابندی کا ملک بھر میں اثر ہورہا ہے ، اس کے بعد سپریم کورٹ نے جنوری کے شروع میں عرضیوں پر نوٹس جاری کرنے پر رضامندی ظاہر کی تھی اور عرضیوں پر اتر پردیش حکومت سے جواب طلب کیا، لیکن عدالت نے حکومتی نوٹیفکیشن کے تحت کارروائی پر فوری روک لگانے سے انکار کردیا۔
آج کی سماعت کے دوران، جمعیۃ کی طرف سے پیش ہونے والے وکیل، ایڈوکیٹ ایم آر شمشاد نے دلیل دی کہ حلال ٹرسٹ تحقیقات کے عمل میں ہر ممکن تعاون کررہا ہے اور مطلوبہ تمام دستاویزات متعلقہ محکمہ کو دے چکا ہے، ریاستی حکومت نے ٹرسٹ کے صدر کو بلا مقصد اور کسی خاص وجہ بتائے بغیر طلب کیا ہے، اور ان سے کہا ہے کہ وہ ذاتی طور پر حاضر ہوں۔ جو کہ غیر مناسب رویہ ہے۔ اس پر جواب دیتے ہوئے جسٹس گوائی نے کہا، "انہیں بتاؤ کہ سپریم کورٹ اس معاملہ کو دیکھ رہا ہے۔"
ایم آر شمشاد نے جواب دیا، "ہم نے ان کو بتایا بھی ہے کہ سپریم کورٹ اس معاملےکو دیکھ رہا ہے۔ پھر بھی وہ صدر کی حاضری پر مصر ہیں ۔ اس کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی صاحب ہیں ، وہ عالمی سطح کے اسلامی اسکالر ہیں ، نیز وہ سابق ممبر پارلیامنٹ ہیں ۔ ان کی طلبی پر اصرار کا اس کے علاوہ کوئی مقصد نظر نہیں آتا کہ مولانا مدنی جائیں اور وہاں پہلے سے ٹی وی کیمرا موجود ہو اورپھر میڈیا ٹرائل چلے ۔
بالآخر، نوٹس جاری کرنے کے علاوہ، عدالت نے یہ بھی ہدایت کی کہ درخواست گزار تنظیم اور اس کے عہدیداروں کے خلاف کوئی جبریہ قدم نہیں اٹھایا جائے۔
پس منظر
18 نومبر 2023کو، اتر پردیش حکومت کی فوڈ سیکیورٹی اینڈ ڈرگ ایڈمنسٹریشن نے "حلال سے تصدیق شدہ مصنوعات کی تیاری، فروخت، ذخیرہ کرنے اور تقسیم کرنے پر فوری اثر سے پابندی لگا دی"، حکومت نے مبینہ طور پر لکھنؤ میں درج شکایت کا حوالہ دیتے ہوئے اپنے فیصلے کو درست ثابت کیا۔ بھارتیہ جنتا پارٹی (بی جے پی) کے یوتھ ونگ کے ایک نمائندہ نے حلال سرٹیفائیڈ کرنے والی تنظیموں پر مسلمانوں میں فروخت کو بڑھانے کے لیے 'جعلی' سرٹیفکیٹ جاری کرنے کا الزام لگا یا تھا۔ اہم بات یہ ہے کہ یہ پابندی صرف اتر پردیش کے اندر فروخت، تیاری اور ذخیرہ کرنے پر لاگو عائد ہوئی اور اس کا اطلاق مصنوعات کے اکسپورٹ پر نہیں ہے۔ آج عدالت میں ایڈوکیٹ ایم آرشمشاد کے علاوہ جمعیۃ علماء ہند حلال ٹرسٹ کے سی او ایڈوکیٹ نیاز احمد فاروقی وغیرہ بھی موجود تھے ۔
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