India’s Greatness Lies in Providing Access to Justice for Every Citizen: Maulana Mahmood As’ad Madani
New Delhi, September 20: Maulana Mahmood Madani, the President of Jamiat Ulama-i-Hind while reacting to the CBI's submission in the Supreme Court regarding the alleged hostility of West Bengal courts, emphasized the importance of a robust judiciary. He stated, "A court's success lies not in punishing the innocent but in ensuring that the true perpetrator of Haren Adhikari’s murder is brought to justice." He further highlighted Jamiat’s commitment to strengthening the country through advocating justice, asserting that India's greatness is reflected in providing access to justice for every citizen. The Jamiat is currently providing legal assistance to 13 individuals framed by the CBI in connection with the post-election riots in Kolkata, all of whom are currently on bail granted by the Supreme Court.
Today, the Supreme Court of India strongly criticized the CBI for its request to transfer cases of post-election violence from West Bengal courts to courts outside the state. The court expressed its displeasure regarding the unfounded allegations made by the CBI against the West Bengal judiciary. The CBI sought the transfer of 45 cases, including those involving the 13 Muslim men accused of participating in the post-election violence, which are being defended under Maulana Mahmood Asa’d Madani's direction.
The incidents date back to May 2, 2021, when Haren Adhikari was brutally assaulted due to political rivalry, ultimately leading to his death. Following this, the police filed cases against 17 individuals, including Qurban, Yunus, Humayun, Raqeeb Mollah, Usman Mollah, Moinuddin, Mumrez Mollah, Reshma Mollah, Supriya Bibi, Sarajul, Saif-ul-Qazi, and Dawood Ali Mollah. Some of the accused had previously secured anticipatory bail from the district court. However, on June 25, 2022, the Calcutta High Court, at the CBI's recommendation, overturned the anticipatory bail granted by the Baruipur District Magistrate’s Court, leaving the accused without relief. While the violence stemmed from a political rivalry between BJP and TMC workers, communal elements exacerbated the situation, giving it a Hindu-Muslim dimension and resulting in the arrest of several innocent and impoverished Muslim youths.
At the families' request, advocates appointed by Jamiat Ulama-i-Hind, under Maulana Mahmood Madani's guidance, filed a special petition (Nos. 10830-10834/2022) in the Supreme Court in November 2022. The court provided interim protection to the accused, allowing them to be summoned for questioning but preventing their arrest by the CBI. On January 4, 2024, the Supreme Court granted bail to the accused. Jamiat Ulama-i-Hind was represented by Advocates Syed Mehdi Imam and Muhammad Noorullah, with Advocate Niaz Ahmed Farooqui overseeing the proceedings. Maulana Siddiqullah Choudhury and Mufti Abdus Salam Qasmi have been in contact with the victims.
The CBI filed a petition in the Supreme Court to transfer cases outside West Bengal, alleging hostility in the state’s courts. During the hearing, Justices Abhay S. Oka and Pankaj Mithal reprimanded Additional Solicitor General S.V. Raju for these claims, questioning, "Are you suggesting that the judiciary is granting bail illegally?" S.V. Raju admitted to flaws in the petition and requested permission to amend it, but the court dismissed this and demanded a written apology instead of a verbal one. Justice Oka remarked, "Accusing an entire judiciary of dishonesty is unacceptable; district judges cannot defend themselves here."
सुप्रीम कोर्ट ने पश्चिम बंगाल की अदालतों को पक्षपाती बताने पर सीबीआई को फटकार लगाई
- 13 निर्दोष मुसलमानों को जमीअत उलेमा हिंद की पैरवी से मिली जमानत पर संकट का बादल छटा
- - जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद मदनी ने स्पष्ट किया कि न्याय के लिए संघर्ष जारी रहेगा
नई दिल्ली, 20 सितंबर: सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल में चुनाव के बाद हुई हिंसा के मामलों को राज्य से बाहर स्थानांतरित करने के अनुरोध पर सीबीआई की कठोर शब्दों में आलोचना की है। न्यायालय ने याचिका में पश्चिम बंगाल की अदालतों पर लगाए गए निराधार आरोपों पर नाराजगी व्यक्त की। ज्ञात हो कि सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट से यह अपील की थी कि पश्चिम बंगाल की अदालतों में जारी 45 मामलों को राज्य से बाहर अन्य अदालतों में स्थानांतरित कर दिया जाए। इनमें उन 13 मुसलमानों का मामला भी है जिनको चुनाव के बाद हुई हिंसा का आरोपी बनाया गया था। उनका केस जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी के निर्देश पर लड़ा जा रहा है और जमीअत उलमा-ए-हिंद के प्रयासों से इस साल 4 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने जमानत स्वीकार कर ली थी।
घटना की सच्चाई यह है कि 02 मई 2021 को रात 8 बजे मृतक हरेन अधिकारी को राजनीतिक दुश्मनी के कारण बेरहमी से मारा-पीटा गया, जिससे उसकी मौत हो गई। बाद में पुलिस ने कुर्बान, यूनिस, हुमायूं, रकीब मुल्ला, उस्मान मुल्ला, मोइनुद्दीन, ममरीज मुल्ला, रेशमा मुल्ला, सुप्रिया बीबी, सिराजुल, सैफुल काजी, दाऊद अली मुल्ला समेत 17 आरोपियों के खिलाफ मामला दर्ज किया। इनमें कुछ आरोपियों ने अग्रिम जमानत ले ली थी। 25 जून, 2022 को कलकत्ता हाई कोर्ट ने सीबीआई की सिफारिश पर बरुईपुर जिला मजिस्ट्रेट की अदालत द्वारा दी गई अग्रिम जमानत को रद्द कर दिया था, जिसके बाद आरोपी के लिए राहत की उम्मीद खत्म हो गई थी। हालांकि यह दंगा दो राजनीतिक दलों बीजेपी और टीएमसी के कार्यकर्ताओं के बीच राजनीतिक दुश्मनी का नतीजा था, लेकिन सांप्रदायिक तत्वों ने इसे हिंदू-मुस्लिम रंग देकर न सिर्फ इलाके में नफरत का माहौल बनाने की कोशिश की, बल्कि इसके परिणामस्वरूप बेचारे निर्दोष गरीब मुस्लिम युवकों को एकतरफा गिरफ्तार कर लिया गया। इन गरीब आरोपियों के परिजनों के अनुरोध पर, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना सैयद महमूद असद मदनी के निर्देश पर नियुक्त किए गए वकीलों ने नवंबर 2022 में सुप्रीम कोर्ट में विशेष याचिका नंबर 10830-10834/2022 दायर की। सुप्रीम ने पहली सुनवाई में ही आरोपियों के अंतरिम सुरक्षा प्रदान कर दी थी कि सीबीआई उन्हें गिरफ्तार नहीं करेगी, लेकिन आवश्यकता पड़ने पर पूछताछ के लिए तलब करेगी। अंततः 4 जनवरी 2024 को अपने अंतिम फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने आरोपियों की स्थाई जमानत स्वीकार कर ली। इस मामले में सुप्रीम कोर्ट में जमीअत उलमा-ए-हिंद से वकील सैयद मेहदी इमाम और वकील मुहम्मद नूरुल्लाह पैरवी कर रहे हैं। जबकि जमीअत उलमा-ए-हिंद के केंद्रीय कार्यालय से एडवोकेट नियाज अहमद फारूकी कानूनी निगरानी कर रहे हैं और राज्य जमीअत उलमा पश्चिम बंगाल के अध्यक्ष मौलाना सिद्दीकुल्ला चौधरी और सचिव मुफ्ती अब्दुस्सलाम कासमी पीड़ितों के संपर्क में हैं।
लेकिन सीबीआई ने सुप्रीम कोर्ट में यह याचिका दायर की थी कि इस केस को भी राज्य से बाहर स्थानांतरित करने का आदेश दिया जाए। इस संबंध में अपने तर्क में सीबीआई ने एक आश्चर्यजनक बात यह कही कि पश्चिम बंगाल की अदालतें न्याय नहीं करतीं और वहां अदालतें द्वेष और भेदभाव के आधार पर फैसले कर रही हैं। कोर्ट के खिलाफ इस प्रकार की टिप्पणी सुनकर घोर नाराजगी व्यक्त करते हुए जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस पंकज मित्तल पर आधारित पीठ ने मामले की सुनवाई के दौरान सीबीआई के अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल एसवी राजू को संबोधित करते हुए कहा, मिस्टर राजू, यह सब किस तरह की बातें हैं कि पश्चिम बंगाल की सभी अदालतों का रवैया भेदभावपूर्ण है? यानी आपने दावा कर रहे हैं कि अदालतें गैरकानूनी तरीके से जमानत दे रही हैं। यह पूरी न्यायिक प्रणाली पर संदेह पैदा करने के समान है।
एसवी राजू ने माना कि याचिका में खामी है, इसलिए इसमें संशोधन की अनुमति दी जाए। कोर्ट ने साफ कहा कि यह याचिका खारिज की जाती है और केवल स्वीकारोक्ति से काम नहीं चलेगा बल्कि लिखित माफी मांगनी होगी। जस्टिस ओका ने कहा कि आपके अधिकारियों को किसी न्यायिक अधिकारी या किसी राज्य के प्रति व्यक्तिगत द्वेष हो सकता है, लेकिन यह कहना कि पूरी न्यायपालिका बेईमान है, बहुत अपमानजनक बात है। जिला जज और सिविल जज यहां आकर अपना बचाव नहीं कर सकते।
इस बीच, जमीअत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने कलकत्ता दंगों में अकारण पकड़े गए लोगों के लिए न्याय की लड़ाई जारी रखने की वचनबद्धता दोहराई और कहा कि यह आश्चर्य की बात है कि इस मामले में सीबीआई की सिफारिश पर कलकत्ता हाई कोर्ट ने इन लोगों की जमानत याचिका खारिज कर दी थी। हमारे वकीलों ने सुप्रीम कोर्ट से जमानत प्राप्त की। हैरानी की बात है कि सीबीआई को फिर भी पश्चिम बंगाल की अदालत पर संदेह है। मौलाना मदनी ने कहा कि न्याय व्यवस्था हर हाल में मजूबूत होनी चाहिए, किसी भी न्यायालय का शासन यह नहीं है कि वह निर्दोष को फांसी के फंदे पर चढा दे और इसे न्याय का नाम दिया जाए, बल्कि अदालत की जीत तब होगी जबकि हरेन अधिकारी के असली हत्यारों के दंडित किया जाए। मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा-ए-हिंद ने अपने प्रयासों से देश को मजबूती दी है। हमारे देश की महानता इस बात में है कि हर व्यक्ति तक न्याय की पहुंच हो।
سپریم کورٹ نے مغربی بنگال کی عدالتوں کو جانبدار قرار دینے پر سی بی آئی کی سرزنش کی
13بے قصور افراد کو جمعیۃ علماء ہند کی پیروی سے ملی ضمانت پرسنکٹ کا بادل چھٹا
صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود مدنی نے کہا کہ ملک کی عظمت ہر شہری کو انصاف ملنے میں ہے۔
نئی دہلی ۲۰ ستمبر : سپریم کورٹ نے جمعہ کو مغربی بنگال میں بعد از انتخابات تشدد کے مقدمات کو صوبےسے باہر منتقل کرنے کی درخواست پر سی بی آئی کو سخت تنقید کا نشانہ بنایا۔ عدالت نے درخواست میں مغربی بنگال کی عدالتوں پر لگائے گئے بے ہودہ الزامات پر ناراضی کا اظہار کیا۔واضح ہو کہ سی بی آئی نے سپریم کورٹ سے یہ درخواست کی تھی کہ مغربی بنگال کی عدالتوں میں جاری 45 مقدمات کو صوبے سے باہر دوسری عدالتوں میں منتقل کردیا جائے جن میں دو سو سے زائد افراد ماخوذ ہیں ۔ ان میں ان تیرہ مسلمانوں کا بھی مقدمہ ہے جن کو انتخاب کے بعد ہوئےتشدد کا ملزم بنا یا گیا تھا ۔ ان کا مقدمہ جمعیۃ علماء ہند کے صدر مولانا محمود اسعد مدنی کی ہدایت پر لڑا جارہا ہے اور جمعیۃ علماء ہندکی کوشش سے رواں سال 4؍جنوری 2024ء کو سپریم کورٹ نے ضمانت منظور کرلی تھی ۔
صورت واقعہ یہ ہے کہ 02 مئی 2021 کی شام 8 بجے متوفی ہرن ادھیکاری کو سیاسی عداوت کے سبب ظالمانہ طور پر مارا پیٹاگیا، جس کی تاب نہ لاکر اس نے دم توڑ دیا۔ بعد میں پولس نے قربان، یونس، ہمایوں، رقیب ملا، عثمان ملا، معین الدین،ممریز ملا، ریشما ملا، سپریا بی بی، سراجل، سیف القاضی، داؤدعلی ملا سمیت 17 ملزمان کے خلاف مقدمہ دائر کیا، ان میں کچھ ملزمان نے ضلع عدالت سے پیشگی ضمانت لے لی تھی۔ 25 جون 2022 کو کلکتہ ہائی کورٹ نے سی بی آئی کی سفارش پر بروئی پور ضلع مجسٹریٹ کی عدالت کے ذریعہ پیشگی ضمانت کو کالعدم کردیا تھا، جس کے بعد ملزمین کے لیے راحت کی امید ختم ہو گئی تھی۔ حالاں کہ یہ فساد دو سیاسی پارٹیاں بی جے پی اور ٹی ایم سی کے کارکنان کی سیاسی عداوت کا نتیجہ تھا، لیکن فرقہ پرست عناصر نے اسے ہندو مسلم رنگ دے کر علاقے میں نہ صرف نفرت کی فضا ہموار کرنے کی کوشش کی، بلکہ اس کے نتیجے میں یک طرفہ طور پر غریب بے قصور مسلم نوجوانوں کو گرفتار کیا گیا۔ ان غریب ملزمین کے اہل خانہ کی گزارش پر صدرجمعیۃعلماء ہند مولاناسید محمود اسعد مدنی کی ہدایت پر مقرر کردہ وکلاء نے نومبر2022 میں سپریم کورٹ میں اسپیشل پٹیشن A Nos.10830-10834/2022 داخل کی، سپریم کورٹ نے پہلی سماعت میں ہی ملزمین کو عارضی طور پر پروٹیکشن دے دیا تھا کہ سی بی آئی انھیں گرفتار نہیں کرے گی، لیکن حسب ضرورت پوچھ تاچھ کے لیے طلب کرے گی۔ بالآخر 4؍ جنوری کو اپنے حتمی فیصلے میں سپریم کورٹ نے ملزمین کی مستقل ضمانت منظورکرلی۔ اس معاملے میں سپریم کورٹ میں جمعیۃ علماءہند کی طرف سے ایڈوکیٹ سید مہدی امام اور ایڈوکیٹ محمد نوراللہ پیروی کررہے ہیں ۔ جب کہ مرکزی دفتر جمعیۃ علماء ہند سے ایڈوکیٹ نیاز احمد فاروقی قانونی نگرانی اور ریاستی جمعیۃ علماء مغربی بنگال کے صدر مولانا صدیق اللہ چودھری اور ناظم اعلی مفتی عبدالسلام قاسمی متاثرین سے رابطے میں ہیں ۔
لیکن سی بی آئی نے سپریم کورٹ میں یہ عرضی داخل کی تھی کہ اس مقدمہ کو بھی ریاست سے باہر منتقل کرنے کا حکم دیا جائے ۔اس سلسلے میں اپنی دلیل میں سی بی آئی نے ایک حیرت انگیز استدلال یہ کیا کہ مغربی بنگال کی عدالتیں انصاف نہیں کرتیں اور وہاں عدالتیں عناد پر مبنی فیصلے کررہی ہیں ۔ عدالت کے خلاف اس طرح کا تبصرہ سن کر سخت ناراضی کا اظہار کرتےجسٹس ابھے ایس اوکا اور جسٹس پنکج متھل پر مشتمل بنچ نے معاملے کی سماعت کے دوران سی بی آئی کے ایڈیشنل سالیسٹر جنرل ایس وی راجو کو مخاطب کرتے ہوئے کہا،مسٹر راجو، یہ کس قسم کی باتیں ہیں کہ مغربی بنگال کی تمام عدالتوں کا رویہ معاندانہ ہے؟ یعنی آپ دعوی کررہےہیں کہ عدالتیں غیر قانونی طور پر سماعت کررہی ہے۔ یہ پورے عدالتی نظام پر شک کرنے کے مترادف ہے۔"
ایس وی راجو نے تسلیم کیا کہ عرضی میں خامی ہے ، اس لیے اس میں ترمیم کی اجازت دی جائے، عدالت نے صاف کہا کہ یہ عرضی خارج کی جاتی ہے اور صرف عذداری نہیں چلے گی بلکہ تحریری معافی مانگنی ہو گی ۔جسٹس اوکا نے کہا کہ آپ کے افسران کو کسی عدالتی افسر یا کسی ریاست کے بارے میں ذاتی طور پر ناگواری ہو سکتی ہے، لیکن یہ کہنا کہ پوری عدلیہ بے ایمان ہے ، بہت نازیبا بات ہے۔ ضلعی ججز اور سول ججز یہاں آ کر اپنا دفاع نہیں کر سکتے۔
دریں اثنا صدر جمعیۃ علماء ہند مولانا محمود اسعد مدنی نے کلکتہ فساد میں ناحق پکڑے گئے لوگوں کے لیے انصاف کی لڑائی جارے رکھنے کا عزم ظاہر کیا اور کہا کہ حیرت ہے کہ اس معاملے میں سی بی آئی کی سفارش پر کلکتہ ہائی کورٹ نے ان لوگوں کی ضمانت عرضی خارج کردی تھی ، ہمارے وکلاء نے سپریم کورٹ سے ضمانت حاصل کی ۔ امر حیرت ہے کہ پھر بھی سی بی آئی کو مغربی بنگال کی عدالت پر شبہ ہے ۔ مولانا مدنی نے کہا کہ عدلیہ کا نظام بہر صورت مستحکم ہونا چاہیے ، کسی بھی عدالت کی حکمرانی یہ نہیں ہے کہ وہ بے قصوروں کو تختہ دار پرچڑھا دے اور اسے انصا ف کا نام دے دیا جائے بلکہ عدالت کی فتح اس وقت ہوگی جب کہ ہرین ادھیکاری کے اصلی قاتل کو سزا دی جائے ۔ مولانا مدنی نے کہا کہ جمعیۃ علماء ہند نے اپنی کوششوں سے ملک کو طاقت پہنچائی ہے۔ ہمارے ملک کی عظمت اس بات میں ہے کہ ہر شخص تک انصاف کی رسائی ہو۔
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